13. कई बार मनुष्य जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने के साथ-साथ किसी को अपना आदर्श भी मानता है, जिसके आदर्शों व सिद्धांतों से प्रेरित होकर वह उसके जैसा बनना चाहता है। दिए गए संकेतों के आधार पर 'आदर्श प्रेरक व्यक्ति' पर 80-100 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिए- संकेत-बिंदु- • आचरण व व्यवहार . प्रस्तावना • आदर्श व्यक्ति का नाम • उपलब्धियाँ उपसंहार
Answers
होता वह अपनी जिंदगी तो जीता है, लेकिन वह इसी राहगीर की तरह यहां-वहां भटकता रहता है। दूसरी ओर जीवन में लक्ष्य होने से मनुष्य को मालूम होता है कि उसे किस दिशा की ओर जाना है। वास्तव में असली जीवन उसी का है जो परिस्थितियों को बदलने का साहस रखता है और अपना लक्ष्य निर्धारित करके अपनी राह खुद बनाता है। महात्मा गांधी कहते हैं कि कुछ न करने से अच्छा है, कुछ करना। जो कुछ करता है, वही सफल-असफल होता है। हमारा लक्ष्य कुछ भी हो सकता है, क्योंकि हर इंसान अपनी क्षमताओं के अनुसार ही लक्ष्य तय करता है। विद्यार्थी के लिए परीक्षा में प्रथम आना तो नौकरी-पेशे वालों के लिए पदोन्नाति पाना, जबकि किसी गृहणी के लिए आत्मनिर्भर बनना उसका लक्ष्य हो सकता है। हालांकि हर मनुष्य को बड़ा लक्ष्य तय करना चाहिए, लेकिन उसे प्राप्त करने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाने चाहिए। जब हम छोटे-छोटे लक्ष्य रखते हैं और उन्हें हासिल करते हैं तो हममें बड़े लक्ष्यों को हासिल करने का आत्मविश्वास आ जाता है।
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि जीवन में एक ही लक्ष्य बनाओ और दिन-रात उसी लक्ष्य के बारे में सोचो। स्वप्न में भी तुम्हें वही लक्ष्य दिखाई देना चाहिए। फिर जुट जाओ, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए। धुन सवार हो जानी चाहिए आपको। सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी। असल में जब आप कोई कर्म करते हैं तो जरूरी नहीं कि आपको सफलता मिल ही जाए, लेकिन आपको असफलताओं से घबराना नहीं चाहिए। अगर बार-बार भी असफलता हाथ आती है तो भी आपको निराश नहीं होना है। इस बारे में विवेकानंद कहते हैं, एक हजार बार प्रयास करने के बाद यदि आप हार कर गिर पड़े हैं तो एक बार फिर से उठें और प्रयास करें। हमें लक्ष्य की प्राप्ति तक स्वयं पर विश्वास और आस्था रखनी चाहिए और अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए।