135, लिखन बैठि जाकी सबिहि,
गहि गहि गरब गरूर।।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।'-
इन पंक्तियों में कौन सा अलंकार है?
(A) भंगपद श्लेष वक्रोक्ति
(B) अभंगपद श्लेष वक्रोक्ति
(C) काकु वक्रोक्ति
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं
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लिखन बैठि जाकी सबिहि,
गहि गहि गरब गरूर।।
भए न केते जगत के, चतुर चितेरे कूर।।'-
इन पंक्तियों में काकु वक्रोक्ति अलंकार है|
काकु वक्रोक्ति अलंकार- इस अलंकार में व्यक्ति द्वारा कही गई बात में कोई दूसरा व्यक्ति जब मूल से भिन्न अर्थ की कल्पना करता है तब वक्रोक्ति अलंकार होता है| अर्थात दोनों व्यक्तियों के अर्थ भिन्न-भिन्न होते है |
इस दोहे में नायिका के सौंदर्य का वर्णन करते हुए बिहारी कहते हैं कि नायिका के सौंदर्य का कोई भी उसके सौंदर्य का वास्तविक चित्रण नहीं कर पाया क्योंकि क्षण-प्रतिक्षण उसका सौंदर्य बढ़ता ही जा रहा था।
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Explanation:
koi koi hramkhor I'm Uttam
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