Hindi, asked by vijaya458, 8 months ago

14 का वर्णन किया है। जगत में निम्न
मापस अपनाया है तथा संसार में सम्मान दिलाया है। रैदास ने सरल, ठा
घा, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। इनके द्वारा रचित
ब' में सम्मिलित हैं।
म्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :
अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।
1. उपरोक्त काव्यांश से अनुप्रास अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।​

Answers

Answered by giriaishik123
0

भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे संतों में महान संत रविदास का नाम अग्रणी है। उनका जन्म सन 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। वह बचपन से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के प्रति अग्रसर रहे। उनकी ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था।मध्ययुगीन साधकों में उनका विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। कबीर ने संत रविदास कहकर इन्हें मान्यता दी। मूर्ति पूजा, तीर्थयात्रा जैसे दिखावों में रविदास जी का बिल्कुल भी विश्वास न था। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी सफाई से प्रकट किए हैं। इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। रैदास के चालीस पद पवित्र धर्मग्रंथ'गुरुग्रंथ साहब'में भी सम्मिलित हैं।कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनकी लोक-वाणी का अछ्वुत प्रयोग था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही संत रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। वे संत कबीर के गुरुभाई थे।'मन चंगा तो कठौती में गंगा'यह उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है।'रविदास के पद','नारद भक्ति सूत्र'और'रविदास की बानी'उनके प्रमुख संग्रहों में से हैं। एक समय जब एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे।

Similar questions