14. 'कहिए दिल जम गया या बच गया।' 15. 'बड़ा रस हैन निन्दा में।
Answers
“कहिए दिल जम गया या बच गया।”
✎... ये कथन ‘मेरी बद्रीनाथ यात्रा’ पाठ का है, जो लेखक ने अपने मित्र से कहा था।
यह कथन उस समय का है जब बद्रीनाथ की घाटी में बहने वाली अलकनंदा नदी के बेहद ठंडे पानी में लेखक के मित्र को विवश होकर नहाना पड़ा। उस ठंडे पानी में नहाने के बाद लेखक के मित्र बुरी तरह कांप रहे थे। तब उन्हें चिढ़ाने के लिए लेखक ने पूछा, ‘दिल जम गया या बच गया।’ लेखक के मित्र ने भी विनोद पूर्ण ढंग में जवाब दिया कि ‘जम कैसे सकता है, दिल पर पानी लगने ही नहीं दिया।’
“बड़ा रस है न निन्दा में।”
✎... ‘बड़ा रस है निंदा में’ यह कथन हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग लेखक हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंग लेख ‘निंदा रस’ में व्यक्त किया है।
अपने व्यंग लेख ‘निंदा रस’ के माध्यम से उन्होंने निंदा करने वाले व्यक्तियों पर व्यंग किया है। ऐसे लोग जिन्हें निंदा करने में बड़ा ही आनंद आता है। ऐसे लोगों का पूरा जीवन अपना दूसरों की निंदा करने में व्यतीत हो जाता है।
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