1453 ईस्वी में कस्तूरिया पर किस जाति ने अधिकार कर लिया था
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कस्तुनतुनिया पर मुसलमानों की जीत जिसे यूरोप कभी नहीं भूल सका
ज़फर सैयद
बीबीसी उर्दू, इस्लामाबाद
29 मई 2018
कुस्तुनतुनिया पर तुर्कों की जीतइमेज स्रोत, FAUSTO ZONARO
इमेज कैप्शन,
तुर्क बादशाह सुल्तान मोहम्मद अपनी फौज के साथ
29 मई, साल 1453 की तारीख. रात के डेढ़ बजे हैं. दुनिया के एक प्राचीन और एक महान शहर की दीवारों और गुंबदों के ऊपर चांद तेजी से पश्चिम की ओर दौड़ा जा रहा है.
जैसे उसे किसी ख़तरे का अंदेशा हो... इस डूबते हुए चांद के धुंधलके में देखने वाले देख सकते हैं कि शहर की दीवारों के बाहर फौज के दस्ते पक्के इरादे के साथ इकट्ठे हो रहे हैं. उनके दिल में ये एहसास है कि वे इतिहास के एक निर्णायक बिंदु पर खड़े हैं.
ये शहर कस्तुनतुनिया है (आज का इस्तांबुल) और दीवारों के बाहर उस्मानी फौज (तुर्क सेना) आखिरी हल्ला बोलने की तैयारी कर रही है. उस्मानी तोपों को शहर की दीवार पर गोले बरसाते हुए 476 दिन बीत चुके हैं. कमांडरों ने ख़ास तौर पर तीन जगहों पर तोपों का मुंह केंद्रित रखकर दीवार को जबरदस्त नुक़सान पहुंचाया है.
21 साल के उस्मानी सुल्तान मोहम्मद सानी अप्रत्याशित रूप से अपने फौज के अगले मोर्चे पर पहुंच गए हैं. उन्होंने ये फैसला कर लिया है कि आखिरी हमला दीवार के 'मैसोटीक्योन' कहलाने वाले बीच के हिस्से पर किया जाएगा जहां कम से कम नौ दरारें पड़ चुकी हैं और खंदक का बड़ा हिस्सा पाट दिया गया है.