History, asked by sangeetadewasi20408, 6 days ago

14वीं से 17वीं तक होने वाले किन्ही दो परिवर्तनों को लिखिए?​

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Answered by sadhikaagarwal45
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जिस प्रकार यूरोप के विद्वानों ने 14वीं सदी से लेकर 17वीं सदी तक प्राचीन रोमन एवं यूनानी साहित्य के प्रति बड़ी अभिरुचि दिखायी, उसी प्रकार कलाकारों एवं शिल्पियों ने भी प्राचीन ललित कलाओं से प्रेरणा प्राप्त की एवं संतति के लिए नये आदर्श से इसका विकास किया। मध्ययुगीन यूरोप की कला मुख्यतया ईसाई धर्म से संबंधित थी, परन्तु साहित्य एवं प्राचीन सभ्यता के प्रभाव स्वरूप पंद्रहवीं एवं सोलहवीं सदियों में यूरोपीय कला का महान रूपांतर व परिवर्द्धन हुआ। अब कला पर साहित्य व प्राचीनता की छाप स्पष्टतया दिखायी देने लगी एवं कला के सभी क्षेत्रों-ं स्थापत्य-कला, मूर्तिकला, चित्रकला एवं संगीत में प्राचीनता के आदर्श अपनाये जाने लगे एवं इनकी अद्वितीय उन्नति हुर्इ। मध्ययुग में जहाँ यूरोप में भाषाओं का प्रारंभिक विकास प्रारंभ हुआ, वहाँ साथ ही, इटली में कर्इ महत्वपूर्ण साहित्य की रचना हो चुकी थी, परंतु पंद्रहवीं सदी में इटालियन विद्वानों द्वारा प्राचीन लैटिन एवं यूनानी साहित्य के प्रति अत्याधिक रुचि-प्रदर्शन के कारण इटालियन लोक भाषा का विकास अवरूद्ध हो गया। इस युग के प्रसिद्ध इटालियन साहित्यकार एवं विद्वान लैटिन एवं यूनानी साहित्य के महान उपासक थे, परंतु अपनी राष्ट्रीय भाषा व साहित्यो के प्रति बड़े उदासीन थे। यद्यपि पेट्रार्क इटालियन भाषा में सुंदर कविताओं की रचना कर सकता था, परंतु वह ऐसी रचना करने में हीनता का बोध करता था। दूसरी ओर , लैटिन भाषा में लिखने में उसे गर्व था। इन विद्वानों ने होरेस, सिसेरो एवं वर्जिल की रचनाओं का अनुसरण किया एवं उन्होंने प्राचीन साहित्य के गौरव एवं वास्तविक सौंदर्य का द्वार प्रशस्त कर दिया। प्राचीन यूनानी तथा लैटिन साहित्य एवं ग्रंथों की खोज एवं वैज्ञानिक अध्ययन के परिणाम स्वरूप विद्वानों में वैज्ञानिक अवचेतना की प्रवृत्ति जागतृ हुई। इस युग में राजाओं या सेनापतियों की प्रशस्ति की अपेक्षा विद्वानों एवं कलाकारों के जीवन चरित्र लिखे एवं पढ़े जाने लगे। प्राचीन कला के अध्येता प्रयोगों में रुचि ले रहे थे और नई पद्धतियों का निर्माण कर कुछ सुप्रसिद्ध कलाकार जैसे लिओनार्दो दा विंची और माइकल एंजेलो नवोदित युग का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। लिओनार्दो दा विंची मूर्तिकार, वैज्ञानिक आविष्कारक, वास्तुकार, इंजीनियर, बैले (Ballet) नृत्य का आविष्कारक और प्रख्यात बहुविज्ञ था। इतालवियों ने चित्रकला में विशेष उत्कर्ष प्रदर्शित किया। यद्यपि प्रयुक्त सामग्री बहुत सुंदर नहीं थी, तथापि उन चित्रकारों की कला यथार्थता, प्रकाश, छाया और दृश्य-भूमिका की दृष्टि से पूर्ण हैं। द विंसी और माइकेल एंजेलो के अतिरिक्त राफेल इटली के श्रेष्ठ चित्रकार हुए हैं। ड्यूयूरेस और हालवेन महान उत्कीर्णक हुए हैं ।

धार्मिक क्रांति व प्रोटेस्टेंट धर्म का उत्थान-

सोलहवीं सदी के प्रारंभ में, यद्यपि सामान्यत: र्इसार्इयों पर कैथलिक धर्म का प्रभाव अक्षुण्ण बना रहा, परंतु सांस्कृतिक पुर्न उत्थान के परिणामस्वरूप सर्वसाधारण जनता में स्वतंत्र चिंतन एवं धार्मिक विषयो का वैज्ञानिक अध्ययन प्रारम्भ हो गया था। सांस्कृतिक पुर्न उत्थान के परिणामस्वरूप यूरोप के विभिन्न राज्यों में लाके भाषाओं एवं राष्ट्रीय साहित्य का विकास आरंभ हुआ। सर्वसाधारण जनता ने क्लिश्ट एवं जटिल लैटिन भाषा का परित्याग कर अपनी मातृभाषाओं में रचित सरल एवं बोधगम्य रचनाओं एवं साहित्य का अध्ययन आरंभ कर दिया था। सांस्कृतिक पुनर्जागरण द्वारा जटिल साहित्य, विज्ञान, कला एवं बौद्धिक जागृति ने सर्वसाधारण जनता को एक नयी स्फूर्ति, स्पंदन और चिंतन से अनुप्राणित कर दिया। अत: सदियों से प्रचलित कैथलिक धर्म के निर्देशों एवं अधिकारों का पालन करने के लिए अब लोग तैयार नहीं थे। अब वे कैथलिक चर्च के अधिकारों एवं निर्देशों का विरोध करने लगे, क्योंकि कैथलिक चर्च का नैतिक स्तर काफी नीचे गिर गया था, अब चर्च की कटुआलोचनाएँ होने लगीं एवं चर्च के विरूद्ध आक्षेप एवं आरोप होने लगे। यद्यपि प्रारंभ में चर्च ने अलोचकों या विरोधियों को नास्तिक कहकर धर्म से निश्कासित किया तथा उन्हें समाज-शत्रु कहकर मृत्यु दण्ड प्रदान किया, परंतु चर्च के विरूद्ध आलोचनाएँ निरंतर बढ़ती ही गयीं। वस्तुत: चर्च के विरूद्ध आलोचनाएँ आधुनिक युग के आगमन एवं मध्ययुग की समाप्ति की सूचक थीं। सोलहवीं सदी के प्रारंभ तक यूरोप में सर्वथा नवीन वातावरण उत्पन्न हो चुका था। अब संदेहवाद एवं नास्तिकता की उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी, जो कालांतर में कैथलिक र्इसार्इ-जगत के लिए बड़ी घातक सिद्ध हुर्इ। सोलहवीं सदी के प्रारंभ में उत्पन्न हुर्इ नवीन जागृति ने एक महान धार्मिक क्रांति उत्पन्न कर दी, जिसके परिणामस्वरूप कैथलिक र्इसार्इ चर्च के परम्परागत अधिकारों के विरूद्ध सशस्त्र तथा सक्रिय विरोध-आंदोलन प्रारंभ हो गया। यही आंदोलन धर्म-सुधार के नाम से प्रख्यात है। आधुनिक युग के प्रारंभ में नवोत्थान ने मनुष्य के बौद्धिक विकास का पथ प्रशस्त कर दिया एवं स्वतंत्र-चिंतन-पद्धति को जन्म दिया। मार्टिन लूथर द्वारा जर्मन भाषा में ‘बार्इबिल’ धर्म- ग्रंथ का अनुवाद एवं प्रकाशन धर्म-सुधार एवं प्रोटेस्टेटं-आन्दोलन के लिए सबसे महत्वपूर्ण एवं सहायक कारण सिद्ध हुआ।

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