15. “बड़ा रस है न निन्दा में ।'
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“बड़ा रस है न निन्दा में ।'
✎... ‘बड़ा रस है निंदा में’ यह कथन हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध व्यंग लेखक हरिशंकर परसाई ने अपने व्यंग लेख ‘निंदा रस’ में व्यक्त किया है। अपने व्यंग लेख ‘निंदा रस’ के माध्यम से उन्होंने निंदा करने वाले व्यक्तियों पर व्यंग किया है। ऐसे लोग जिन्हें निंदा करने में बड़ा ही आनंद आता है। ऐसे लोगों का पूरा जीवन अपना दूसरों की निंदा करने में व्यतीत हो जाता है।
लेखक का कहना है कि निंदा हमेशा ईर्ष्या और द्वेष से प्रेरित होती है। किसी के प्रति ईर्ष्या और द्वेष की भावना से किसी व्यक्ति के मन में दूसरे के प्रति निंदा करने का भाव उत्पन्न होता है। निंदा हीनता और कमजोरी की निशानी है, क्योंकि यह नकारात्मकता का भाव लिए होती है। जो व्यक्ति स्वयं तो कुछ नहीं कर पाता और दूसरों की निंदा करने में अपना समय नष्ट करता है। परन्तु निंदा करने वाला व्यक्ति इस बात को नहीं समझ पाता और उसे दूसरों की निंदा करने में बड़ा ही आनंद आता है।
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