15 lines on rail yatra in hindi
Answers
यात्रा चाहे किसी भी प्रकार की हो चाहे वो बस, रेल, हवाई जहाज, पानी का जहाज, सभी आनंददाई होती है. यात्रा करने से हमें नई नहीं जाए देखने को मिलती है साथ ही अनेकों विचारों वाले लोगों से भी मिलने का मौका मिलता है.
हमें भारत में यात्रा करते समय हर दूसरे शहर में नई संस्कृति देखने को मिलती है शायद यात्रा करने का यही सबसे आनंद पल होता है कि हमें तरह तरह के लोग, प्रकृति और संस्कृति देखने को मिलती है.
मेरी पहली रेल यात्रा मैंने बचपन में की थी तब मैं कक्षा 6 में पढ़ता था. मुझे सही से तो याद नहीं लेकिन उस समय फरवरी का महीना था और सर्दियां बहुत पड़ रही थी. मेरे स्कूल की 10 दिनों की छुट्टियां पड़ी थी इसलिए पिताजी ने मुझे बिना कुछ बताए वैष्णो देवी जाने का प्लान बना लिया था.
जब मैं दोस्तों के साथ खेल कर शाम को घर लौट कर आया तो मां ने बताया कि कल हम मां वैष्णो देवी के दर्शन करने जा रहे है. यह सुनकर मैं बहुत खुश हो गया क्योंकि हम काफी समय बाद कहीं पर घूमने जा रहे थे. मैं उस समय इतना खुश था कि खुशी के मारे मैं इधर-उधर कूद रहा था.
थोड़ी देर बाद मन शांत हुआ तो मैंने मां कोतूहल वश पूछा कि हम वैष्णो देवी कैसे जाएंगे तुमने कहा कि हम वैष्णो देवी “रेल” से जाएंगे. यह सुनकर तो मैं और खुश हो गया क्योंकि मैंने पहले कभी रेल से सफर नहीं किया था. बस किताबों और TV पर ही रेल को चलते देखा था.
मां ने शाम को ही सारे सामान की पैकिंग कर ली थी. ट्रेन रात के 3:00 बजे की थी. मां ने कहा तुम जाकर सो जाओ लेकिन मुझे नींद कहां आने वाली थी मैं पूरी रात भर यही सोच रहा था कि रेल का सफर कैसा होगा. जैसे-तैसे रात के 2:00 बजे और मां ने मुझे उठाया और कहा कि तैयार हो जाओ रेलवे स्टेशन जाना है.
मैं हाथ मुंह धो कर तैयार हो गया और पिताजी घर के बाहर टैक्सी बुला ली. घर के बाहर निकलें तो देखा कि सर्दी बहुत थी और कोहरा छाया हुआ था. हम टैक्सी में बैठ कर करीब 2:30 बजे दिल्ली स्टेशन पहुंचे. पिताजी ने पहले ही ट्रेन की टिकट बुक करा ली थी.
हमारा ट्रेन का सफर बहुत लंबा होने वाला था क्योंकि हमें जयपुर से वैष्णो देवी जाना था. स्टेशन पहुंचने के बाद हम प्लेटफॉर्म पर बैठे हुए थे वहां पर मैंने देखा कि एक ट्रेन आ रही थी तो एक ट्रेन जा रही थी. वहां पर लोगों की बहुत ज्यादा भीड़ थी. रेल की सीटी इतनी जोरदार थी कि उसको 5 किलोमीटर दूर तक सुना जा सकता था.
कुछ समय बाद क्या समय पर हमारी ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी थी. पिताजी ने कुली से हमारा सामान ट्रेन के डिब्बे में रखवा दिया. फिर हम सभी ट्रेन के एक वातानुकूलित डिब्बे में जाकर बैठ गए वहां पर मैंने देखा कि बैठने के लिए बड़ी-बड़ी आरामदायक सीटें थी और ट्रेन का डिब्बा एक कमरे की तरह बड़ा था.
ट्रेन में सभी प्रकार की सुविधाएं थी गर्मियों के लिए ऐसी और पंखे की सुविधा थी तो सर्दियों के लिए हीटर की भी सुविधा थी. रेल के डिब्बे रोशनी की सुविधा के लिए कई लाइटें लगाई हुई थी. मुझे ऐसा लगा था कि मानो मैं किसी कमरे में बैठा हूं.
मैंने पहले कभी ट्रेन से यात्रा नहीं की थी इसलिए यह मुझे बहुत ही अलग लग रहा था क्योंकि इतनी आरामदायक और खुली सीटें मुझे कभी देखने को नहीं मिली थी.