Hindi, asked by mamta1986kashyap, 1 month ago

15 वी शताब्दी में संतो ने समाज में क्या भूमिका निभाई ​

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Answered by krbishnoi46
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Answer:

मध्‍यकालीन भारत के सांस्‍कृतिक इतिहास में भक्ति आन्दोलनों की एक खास भूमिका है.  सामाजिक-धार्मिक सुधारकों ने इस काल में समाज विभिन्न तरह से भगवान की भक्ति का प्रचार-प्रसार किया. नारद, अलवर, नयनार, आदि शंकराचार्य, कुछ प्रमुख संत थे.

(1)  भक्ति आन्दोलन का आरम्भ दक्षिण भारत में आलवारों एवं नायनारों से हुआ जो कालान्तर में उत्तर भारत सहित सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में फैल गया.

(2) इस हिन्‍दू क्रांतिकारी अभियान के नेता शंकराचार्य थे जो एक महान विचारक और जाने-माने दार्शनिक रहे. इस अभियान को चैतन्‍य महाप्रभु, नामदेव, तुकाराम, जयदेव ने और अधिक मुखरता प्रदान की. इस अभियान की प्रमुख उपलब्धि मूर्ति पूजा को समाप्‍त करना रहा.

(3) शैव संत अप्पार ने पल्लव राजा महेन्द्रवर्मन को शैवधर्म स्वीकार करवाया.

(4)  भक्ति कवि संतो के दो समूह थे-पहला वो जोमहाराष्ट्र में लोकप्रिय हुए और भगवान विठोबा के भक्त थे, ये तीर्थयात्रा-पंथ कहलाते थे. दूसरा समूह था-राजस्थान औरपंजाब का जिनकी निर्गुण भक्ति में आस्था थी.

(5) भक्ति आंदोलन के नेता रामानंद ने राम को भगवान के रूप में लेकर इसे केन्द्रित किया. उनके बारे में बहुत कम जानकारी है, परन्‍तु ऐसा माना जाता है कि वे 15वीं शताब्‍दी के प्रथमार्ध में रहे. उन्‍होंने सिखाया कि भगवान राम सर्वोच्‍च भगवान हैं और केवल उनके प्रति प्रेम और समर्पण के माध्‍यम से और उनके पवित्र नाम को बार - बार उच्‍चारित करने से ही मुक्ति पाई जाती है.

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