16. किसी ज्वेलर्स की ओर से लगभग 25 से 50 शब्दों में विज्ञापन लिखिए ।
अथवा
Answers
Answer:
देश का ज्वैलरी उद्योग उत्पाद शुल्क की मार झेल रहा है। इसकी वापसी को लेकर ज्वैलरी व्यवसाइयों ने करीब डेढ़ महीने की हड़ताल की लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई। फिलहाल मामले पर समिति बना दी गई है। और अब इसकी विवरण का इंतजार है। इस बीच पहली जून से स्त्रोत पर ही कर संग्रहण की व्यवस्था लागू की जा रही है। इससे उद्योग के और मंदा होने की आशंका व्यक्त है। आखिरटीसीएस (उद्योग उत्पाद शुल्क) लागू करने के पीछे सरकार की मंशा क्या हैं? क्या करोबारी इस अंकुश को सहन कर पाने की स्थिति में हैं?
सरकार:- के ज्वैलरी उद्योग पर स्त्रोत पर कर संग्रहण की अनिवार्यता लागू होने से इस उद्योग को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ेगा। सरकार का मन्तव्य तो नकद लेन-देन कम से कम करने का है लेकिन ज्वैलरी जैसे कारोबार में दो लाख रुपए से ज्यादा के नकद भुगतान पर यह अनिवार्यता अव्यावहारिक प्रतीत होती है। काले धन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार रीयल स्टेट (स्वतंत्र राज्य) के साथ ज्वैलरी उद्योग पर भी यह प्राधान लागू कर रही हैं। देखा जाए तो रीयल स्टेट के व्यवहार व ज्वैलरी कारोबार के व्यवहार में अंतर है। संपत्ति के सौंदों में एग्रीमेंट (समझौता) , रजिस्ट्र आदि का पुख्ता प्रबंध होता है और ऐसे सौदों में किसी के ठगे जाने की आशंका कम रहती है। लेकिन, ज्वैलरी में कारोबारी को चेक प्राप्त करने के साथ ही क्रेता को आभूषणों की डिलीवरी देनी होगी। यह बात सही है कि इसमें पेन कार्ड की अनिवार्यता रखी गई है पर आभूषण विक्रता चेक से भुगतान लेने के बाद भी उसके साफ होने तक फंसा ही रहेगा। कहीं उसका चेक बाउंस हो गया तो? ऐसे में यदि खरीददार अनजान है तो वह ठगी का शिकर भी हो सकता है, इसमें संदेह नहीं। आभूषणों पर उत्पाद शुल्क पहले ही लागू हो गया है। अब नकद व्यवहार कर रहे हैं तो भी कर देना होगा। सरकार का मन्तव्य भले ही इसके पीछे अच्छा रहा हो लेकिन हमारा मानना है कि इससे ग्राहकी भी कमजोर होगी। हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि अपने खेत-खनिहार से निकला अनाज बेच कर आभूषण खरीदने आया काश्तकार चेक बुक साथ ही लाएगा? यह व्यवस्था आम कारोबारी और ग्राहको दोनों को ही उलझाने वाली होगी और कागजी खानापूर्ति बढ़ने से इंस्पेक्टर राज का खतरा भी हो जाएगा। छोटे कारोबारी पहले सही धंधे में मंदी के शिकार हैं। ऐसे प्रावधानों से उसे कई झंझटों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि सरकार ने आश्वस्त किया कि इस व्यवस्था से इंस्पेक्टर राज का खतरा नहीं होने वाला है। आभूषण तैयार होने के साथ ही उस पर उत्पाद शुल्क पहले ही लग रहा है। व्यापारी बिना वैट के अपना माल बेच नहीं सकता। वह नकद भुगतान लेकर भी उसे बैंक में जमा करा रहा है। और, सबसे बड़ी समस्या यह है कि ग्राहक यदि चेक से भुगतान नहीं करना चाहता तो व्यापारी उसको बाध्य भी नहीं कर सकता है। आभूषण कारोबारियों के सामने दूसरी बड़ी समस्या हॉल मार्किंग (गहनो को प्रमाणित करने का चिन्ह की रोशनी) अनिवार्यता को लेकर आने वाली है। बड़ा सवाल यह है कि जिसके पास बिना हॉल मार्किंग वाला माल पड़ा है, उसका क्या होगा? दूसरी बात यह भी है कि हमारे यहां हॉल मार्किंग सेंटर (स्थान) भी अभी इतने नहीं हैं कि सब आभूषण निर्माता आसानी से जांच करा सकें।