16 शताब्दी के भारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत
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ज्ञानवादी दर्शन मन में उत्पन्न निराशा के विषाद को खत्म न कर सका और न ही सामान्य लोगों को सुग्राह्य हो सका। परिणामतः कालांतर में संतों द्वारा अद्वैतवाद की आलोचना की गई तथा वैष्णव संतों द्वारा शंकर के अद्वैतवाद के विरोध में दक्षिण में मतों की स्थापना की गई, जो इस प्रकार है-
विशिष्टाद्वैतवाद - रामानुजाचार्य
द्वैतवाद - मध्वाचार्य
शुद्धाद्वैतवाद -विष्णुस्वामी या वल्लभाचार्य
द्वैताद्वैतवाद -निंबार्काचार्य
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