17. आरोह: शब्दस्य विलोम पदानि अस्ति-
O अवरोहः
परकीयम्
O उपरिः
अवरुधः
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- गुरु पद बंदि सहित अनुरागा ।
- राम मुनिन्ह सन आयसु माँगा ।।
- सहजहिं चले सकल जग स्वामी ।
- मत्त मंजु बर कुंजर गामी ।।
- चलत राम सब पुर नर नारी ।
- पुलक पूरि तन भए सुखारी ।।
- बंदि पितर सुर सुकृत सँभारे ।
- जौं कछु पुन्य प्रभाउ हमारे ।।
- तौ सिवधनु मृनाल की नाईं।
- गुरु पद बंदि सहित अनुरागा ।
- राम मुनिन्ह सन आयसु माँगा ।।
- झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गए मधुगधर वे
- पुर तें निकसी रघुबार-बधू, धरि धीर दए, मग में पदे
- फिरि बूझति हैं, “चलनो अब केतिक, पर्नकुटी करिहों कित है?"
- तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चलीं जल ।
- 'जल को गए लक्खनु, हैं लरिका परिखौ, पिय! छाँह घरीक है ठाढ़े।
- पोंछि पसेउ बयारि करौं, अरु पायँ पखारिही भूभुरि-डाढ़े।
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