17. अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नैकु सयानप बाँक नहीं।
जहाँ सूधौ चलौ तजि आपुनपौ, झिझक कपटी जे निसौक नहीं।
घन आनँद प्यारे सुजान सुनो, यहाँ एक ते दूसरो जाँक नहीं।
तुम कौन धौ पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहूँ पे देह छटॉक नहीं।
ras pehachaniye
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अर्थात्: घनानंद यहां ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ वाले मूड में हैं और कह रहे हैं कि प्यार के रास्ते पर जरा भी सयानापन और चालाकी नहीं चलती है, क्योंकि यहां तो सच्चाई के साथ ही आगे बढ़ा जा सकता है. ईगो को यहां छोड़ना पड़ता है. छल-कपट रखने वालों को इस रास्ते पर चलने में झिझक होती है.
यहां घनानंद विरक्त होकर भी सुजान को भूल नहीं पाते और उसका नाम लेकर कृष्ण को संबोधित करते हैं कि एक के सिवा प्यार में कोई दूसरा नहीं होता.
लेकिन हे कृष्ण! तुम कौन से स्कूल से पढ़ कर आए हो कि मन (दिल) भर लेते हो और देते छटांक भर (थोड़ा-सा प्यार) भी नहीं हो.
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