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स्तुत चोपाई में श्रीराम ने सुग्रीव को भयमुक्त करने के उद्देश्य से सच्चे मित्र के लक्षण कर
जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहिं बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरिसम रज करिजाना। मित्रक दुख रजमेरु समाना।।
जिन्ह के असिमति सहज न आई। ते सठ कतहठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपथ चलावा। गुन प्रकटै अवगुनन्हि दुरावा।।
देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई।।
बिपत्तिकाल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन ऐहा।।
आगे कह मृदु बचन बनाई। पाछे अनहित मन कुटिलाई।।
जाकर चित अहि गति समभाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।।
सेवक सठ, नृपकृपन, कुनारी। कपटी मित्र सूलसमचारी।।
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