Social Sciences, asked by deepukanchu3, 6 months ago

1757 से लेकर 1911 तक ब्रिटिश शासन काल में भारत की राजधानी क्या थी?​

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Answered by Anonymous
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1757 से लेकर 1911 तक ब्रिटिश शासन काल में भारत की राजधानी कलकत्ता थी !

Explanation:

1757 से लेकर 1911 तक ब्रिटिश शासन काल में भारत की राजधानी कलकत्ता थी ! जब अंग्रेज़ भारत आये तो सबसे पहले वो बंगाल पहुंचे उस समय उन्होंने कलकत्ता का अपनी राजधानी बनाया क्यों की वहां से व्यापार  करना  आसान था !

11 दिसंबर 1911 को अंग्रेजी हुक्मरान ने एक दिल्ली दरबार आयोजन किया था. इसी दिल्ली दरबार में जॉर्ज पंचम ने यह प्रस्ताव रखा था कि हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता के बजाए दिल्ली कर दी जानी चाहिए. उसके बाद का नजारा ऐसा था जैसे हर अंग्रेज दिल में यही अरमान थे. सबने हाथोहाथ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इसके बाद 12 दिसंबर 1911 की सुबह 80 हजार से भी ज्यादा लोगों की भीड़ के सामने ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने जब ये घोषणा की, दिल्ली ही हिन्दुस्तान की राजधानी होगी.  

लेकिन अंग्रेजी सियासत और अंग्रेजी सामाज्य इतना आसान न था कि इस घोषणा को अमलीजामा पहनाया जा सके. करते-करते मार्च 1931 को अंग्रेजी आलाकमान ने पूरी तरह से दिल्ली को राजधानी मान ली और कलकत्ता को उसके हाल पर छोड़ दिया. जब दिल्ली को राजधानी बनाया गया तो पूरे गाजे-बाजे के साथ. पूरी दूनिया को यह संदेश दिया गया कि अब हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता नहीं दिल्ली होगी. ऐसे में यह जरूरी तथ्य है कि वो कौन सी बात थी, जिसके चलते अंग्रेज कलकत्ता से दिल्ली भागे.

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कोलकाता को छोड़कर आखिर दिल्ली को क्यों राजधानी बनाया अंग्रेजों ने

कोलकाता को छोड़कर आखिर दिल्ली को क्यों राजधानी बनाया अंग्रेजों नेक्यों अंग्रेजों को दिल्ली में 80 हजार लोगों को बुलाकर दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा करनी पड़ी?

क्यों अंग्रेजों को दिल्ली में 80 हजार लोगों को बुलाकर दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा करनी पड़ी?  

11 दिसंबर 1911 को अंग्रेजी हुक्मरान ने एक दिल्ली दरबार आयोजन किया था. इसी दिल्ली दरबार में जॉर्ज पंचम ने यह प्रस्ताव रखा था कि हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता के बजाए दिल्ली कर दी जानी चाहिए. उसके बाद का नजारा ऐसा था जैसे हर अंग्रेज दिल में यही अरमान थे. सबने हाथोहाथ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इसके बाद 12 दिसंबर 1911 की सुबह 80 हजार से भी ज्यादा लोगों की भीड़ के सामने ब्रिटेन के किंग जॉर्ज पंचम ने जब ये घोषणा की, दिल्ली ही हिन्दुस्तान की राजधानी होगी.

लेकिन अंग्रेजी सियासत और अंग्रेजी सामाज्य इतना आसान न था कि इस घोषणा को अमलीजामा पहनाया जा सके. करते-करते मार्च 1931 को अंग्रेजी आलाकमान ने पूरी तरह से दिल्ली को राजधानी मान ली और कलकत्ता को उसके हाल पर छोड़ दिया. जब दिल्ली को राजधानी बनाया गया तो पूरे गाजे-बाजे के साथ. पूरी दूनिया को यह संदेश दिया गया कि अब हिन्दुस्तान की राजधानी कलकत्ता नहीं दिल्ली होगी. ऐसे में यह जरूरी तथ्य है कि वो कौन सी बात थी, जिसके चलते अंग्रेज कलकत्ता से दिल्ली भागे.  

राजधानी बनाए जाने के पीछे रहीं ये दो खास वजहें

कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे दो खास वजह थी. पहली ये कि ब्रिटिश सरकार से पहले कई बड़े साम्राज्यों ने दिल्ली से शासन चलाया था, जिसमें आखिरी थे मुगल और दूसरी दिल्ली की उत्तर भारत में भौगोलिक स्थिति. ब्रिटिश सरकार का ऐसा मानना था कि दिल्ली से देश पर शासन चलाना ज्यादा आसान होगा.  

हालांकि कुछ जानकार ऐसा भी मानते है कि बंगाल बंटवारे के बाद कलकत्ता में हिंसा और उत्पात में हुए इजाफे और बंगाल से तूल पकड़ती स्वराज की मांग के मध्यनजर ये फैसला लिया गया था. असल में इस तथ्य को सच के अधिक करीब माना जाता है. ऐसा बताया जाता है कि बंगाल ही वह धरती है, जहां सबसे पहले अंग्रेजों को पनाह मिली, ईस्ट इंडिया कंपनी की स्‍थापना हुई और बंगाल ही वह जगह है जहां से जड़ें कमजोर होनी शुरू हुईं.  

लेकिन अंग्रेजों ने इसका काट ढूंढ़ लिया. उन्होंने राजनैतिक फैसले से इस विवाद कुछ यूं सुलझाने की कोशिश की, कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. उन्होंने एक भव्य आयोजन किया राजधानी बदलने पर और इसे भारत के पक्ष में बता दिया.

गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने किया था विधिवत उद्घाटन  : अगस्त 1911 में उस समय के वॉयसरॉय लॉर्ड हार्डिंग द्वारा लंडन भेजे गए एक खत में भी कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने की जरूरत पर और जोर दिया गया था. साल 1931 में उस समय के वायसरॉय और गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने दिल्ली का राजधानी के रूप में विधिवत उद्घाटन किया था.

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