Hindi, asked by Aayushameena855, 7 months ago

1789 कि फ्रांसीसी क्रान्ति का फ्रांस वे यूरोप पर क्या प्रभाव पड़ा?​

Answers

Answered by divyakumari2705
0

Answer:

फ्रांसीसी क्रांति को पूरे विश्व के इतिहास में मील का पत्थर कहा जाता है। इस क्रान्ति ने अन्य यूरोपीय देशों में भी स्वतन्त्रता की ललक कायम की और अन्य देश भी राजशाही से मुक्ति के लिए संघर्ष करने लगे। इसने यूरोपीय राष्ट्रों सहित एशियाई देशों में राजशाही और निरंकुशता के खिलाफ वातावरण तैयार किया।

Answered by 79singhmuskan
0

Answer:

REVOLUTION): भूमिका

18वीं शताब्दी के 70-80 के दशकों में विभिन्न कारणों से राजा और तत्कालीन राजव्यवस्था के प्रति फ्रांस के नागरिकों में विद्रोह की भावना पनप रही थी. यह विरोध धीरे-धीरे तीव्र होता चला गया. अंततोगत्वा 1789 में राजा लुई 16वाँ (Louis XVI) को एक सभा बुलानी पड़ी. इस सभा का नाम General State था. यह सभा कई वर्षों से बुलाई नहीं गयी थी. इसमें सामंतों के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के भी प्रतिनिधि होते थे. इस सभा में जनता की माँगों पर जोरदार बहस हुई. स्पष्ट हो गया कि लोगों में व्यवस्था की बदलने की बैचैनी थी. इसी बैचैनी का यह परिणाम हुआ कि इस सभा के आयोजन के कुछ ही दिनों के बाद सामान्य नागरिकों का एक जुलूस बास्तिल नामक जेल पहुँच गया और उसके दरवाजे तोड़ डाले गए. सभी कैदी बाहर निकल गए. सच पूंछे तो नागरिक इस जेल को जनता के दमन का प्रतीक मानते थे. कुछ दिनों के बाद महिलाओं का एक दल राजा के वर्साय स्थित दरबार को घेरने निकल गया जिसके फलस्वरूप राजा को पेरिस चले जाना पड़ा. इसी बीच General State ने कई क्रांतिकारी कदम भी उठाना शुरू किए. यथा – मानव के अधिकारों की घोषणा, मेट्रिक प्रणाली का आरम्भ, चर्च के प्रभाव का समापन, सामंतवाद की समाप्ति की घोषणा, दास प्रथा के अंत की घोषणा आदि. General State के सदस्यों में मतभेद भी हुए. कुछ लोग क्रांति के गति को धीमी रखना चाहते थे. कुछ अन्य प्रखर क्रान्ति के पोषक थे. इन लोगों में आपसी झगड़े भी होने लगे पर इनका नेतृत्व कट्टर क्रांतिकारियों के हाथ में रहा. बाद में इनके एक नेता Maximilian Robespierre हुआ जिसने हज़ारों को मौत के घाट उतार दिया. उसके एक वर्ष के नेतृत्व को आज भी आतंक का राज (Reign of terror) कहते हैं. इसकी परिणति स्वयं Louis 16th और उसकी रानी की हत्या से हुई. राजपरिवार के हत्या के पश्चात् यूरोप के अन्य राजाओं में क्रोध उत्पन्न हुआ और वे लोग संयुक्त सेना बना-बना कर क्रांतिकारियों के विरुद्ध लड़ने लगे. क्रांतिकारियों ने भी एक सेना बना ली जिसमें सामान्य वर्ग के लोग भी सम्मिलित हुए. क्रान्ति के नए-नए उत्साह के कारण क्रांतिकारियों की सेना बार-बार सफल हुई और उसका उत्साह बढ़ता चला गया. यह सेना फ्रांस के बाहर भी भूमि जीतने लगी. इसी बीच इस सेना का एक सेनापति जिसका नाम नेपोलियन बोनापार्ट था, अपनी विजयों के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ. इधर फ्रांस के अन्दर कट्टर क्रांति से लोग ऊब चुके थे. इसका लाभ उठाते हुए और अपनी लोकप्रियता को भुनाते हुए नेपोलियन ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और एक Consulate बना कर शासन चालने लगा. यह शासन क्रांतिकारी सिद्धांतों पर चलता रहा. अंततः नेपोलियन ने सम्राट की उपाधि अपने आप को प्रदान की और इस प्रकार फ्रांसमें राजतंत्र दुबारा लौट आया. इस प्रकार हम कह सकते हैं फ्रांस की क्रांति (French Revolution) अपनी चरम अवस्था में थी.

1789 ई. की फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी. यह क्रांति (French Revolution) निरंकुश राजतंत्र, सामंती शोषण, वर्गीय विशेषाधिकार तथा प्रजा की भलाई के प्रति शासकों की उदासीनता के विरुद्ध प्रारंभ हुई थी. उस समय फ्रांस में न केवल शोषित और असंतुष्ट वर्ग की विद्दमान थे, बल्कि वहाँ के आर्थिक और राजनैतिक ढाँचा में भी विरोधाभास देखा जा सकता था. राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण हो चुका था. सम्पूर्ण देश की धुरी एकमात्र राज्य था. समाज का नेतृत्व शनैः शनैः बुद्धिजीवी वर्ग के हाथ में आ रहा था. राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. राजा की इच्छाएँ ही राज्य का कानून था. लोगों को किसी प्रकार का नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं था. राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता परेशान थी. भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था. लोगों को धार्मिक स्वंतत्रता भी नहीं दी गयी थी. राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था. सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हो जाता था. राज्य के उच्च पदों पर राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति होती थी. स्थानीय स्वशासन का अभाव था. फ्रांसीसी समाज दो टुकड़ों में बँट कर रह गया था – एक सुविधा-प्राप्त वर्ग और दूसरा सुविधाहीन वर्ग.

फ्रांस की क्रांति (French Revolution) का प्रभाव विश्वव्यापी हुआ. इसके फलस्वरूप निरंकुश शासन तथा सामंती व्यवस्था का अंत हुआ. प्रजातंत्रात्मक शासन-प्रणाली की नींव डाली गई. सामजिक, आर्थिक और धार्मिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण सुधार लाये गए.

Similar questions