18 30 की क्रान्ति के कारणों एवं प्रभावो
का वर्णन जिए
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क्रांति के कारण:
- चार्ल्स दशम् एक प्रतिक्रियावादी सम्राट था। राजा के दैवीय सिद्धांत का समर्थक और मानवाधिकारों का घोर विरोधी था। उसने मानव अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं उसने चर्च की शक्ति में पुनर्वृद्धि करना शुरू किया, शिक्षा देने का अधिकार चर्च को पुनः लौटा दिया गया। कैथोलिक धर्म-विरोधी अध्यापकों को हटा दिया गया।
- चार्ल्स दशम् ने कुलीनों के हितों की रक्षा के नाम पर क्रांति के दौरान हुई उनकी आर्थिक क्षतिपूर्ति की भरपाई के लिए एक बड़ी रकम दी। इसकी पूर्ति के लिए उसने राष्ट्रीय ऋण की ब्याज दर 5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत कर दी। सरकार के इस कार्य से मध्यम वर्ग काफी नाराज हुआ क्योंकि इसी वर्ग ने सरकार को कर्ज दिया था।
- चार्ल्स ने जुलाई 1830 में चार अध्यादेश जारी किये फलतः असंतोष की भावना चरम पर पहुंच गई। यह अध्यादेश थे्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया गया,) प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया गया,
- मताधिकार सीमित कर दिया गया,
- सभा की कार्यावधि घटा दी गई।
इस अध्यादेश ने चारों ओर विरोध पैदा किया। विद्यार्थी, अवकाश प्राप्त सैनिक, मजदूर सब क्रांति के मार्ग पर बढ़ गये। इस क्रांति का नेतृत्व वयोवृद्ध नेता लफायत ने किया। विरोध के फलस्वरूप चार्ल्स दशम् को सिंहासन छोड़ना पड़ा। अपने 10 वर्षीय पोते काउंट ऑफ चेम्बोल्ड के पक्ष में सिंहासन त्यागकर इंग्लैण्ड भाग गया। इस प्रकार क्रांति सफल हुई और चार्ल्स का शासन समाप्त हुआ। फ्रांस की जनता ने चार्ल्स दशम् के इस उत्तराधिकारी को राजा स्वीकार नहीं किया बल्कि ड्यॉक ऑफ आर्लियन्स के लुई फिलीप को राजा बनाया गया।
प्रभाव :
1. फ्रांस तथा यूरोप के इतिहास में 1848 की क्रांति का अत्यधिक महत्व है। इसने जनता के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। 1848 की क्रांति में सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर विशेष जोर दिया और मजदूरों तथा कारीगरों को अधिकाधिक सुविधाएं देने का प्रयत्न किया।
2. क्रांति के फलस्वरूप यूरोप के राजनीतिक विचारों में परिवर्तन की एक लहर पैदा हुई। उदार एवं राष्ट्रीय विचारों के विकास के साथ अब गुप्त समितियों का स्थान संगठित आंदोलनों ने ले लिया।
3. क्रांति के फलस्वरूप यूरोप भर में निरंकुश शासन की नींव हिल गई। राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक स्वतंत्रता के विचार पनपने लगे फलस्वरूप यूरोप के देशों में वैधानिक शासन का विकास हुआ। सार्डिनिया, स्विट्जरलैण्ड, फ्रांस, हॉलैण्ड में वैधानिक शासन की स्थापना के लिए जन आंदोलन हुआ और उन्हें सफलता भी मिली। इंग्लैण्ड में संसदीय निर्वाचन क्षेत्र अधिक व्यापक हुये।
4. सामूहिक चेतना का युग आरंभ हुआ। क्रांति ने जनसमूह के महत्व को सामने रखा। जो चेतना पहले कुछ व्यक्तियों एवं नेताओं तक सीमित थी अब वह जनसमूह की चेतना बन गई। राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक अन्यायों के विरूद्ध खड़े होने के लिए जनता अब किसी नेता की प्रतीक्षा नहीं करती थी।
5. क्रांति का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि "जनमत का अधिकार" अब केवल मध्यम वर्ग तक सीमित न रह कर पूरी जनता को मिल गया। आर्थिक लोकतंत्र के विषय में यह एक विशेष घटना थी।
6. क्रांति ने वह मार्ग प्रशस्त कर दिया जिस पर चलकर प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का और सार्डिनिया के नेतृत्व में इटली का एकीकरण पूरा हुआ।
7. मेटरनिख व्यवस्था का अंत हुआ जो उदारवाद को एक 'संक्रामक रोग' समझता था।
8. सैनिक शक्ति का महत्व बढ़ा। क्रांतिकारियों ने सीख ली कि अब कोई भी क्रांति बिना सेना के सक्रिय सहयोग से सफल नहीं हो सकती। भविष्य में सरकारें अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए संगठित सैनिक शक्ति पर अत्यधिक निर्भर रहने लगी। बिस्मार्क द्वारा जर्मनी का और गैरीबॉल्डी द्वारा इटली का एकीकरण सेना की शक्ति पर आधारित था।
9. यथार्थवाद का उदय हुआ। 1848 की क्रांति की सफलता ने क्रांतिकारियों की रोमांटिक आशाओं को नष्ट कर दिया। अब यूरोपीय साहित्यकार यथार्थवाद की ओर झुके। लोग अपने लक्ष्यों को आदर्शवादी रूप में देखने के बजाय उसको प्राप्त करने के लिए ठोस तरीकों का यथार्थवादी मूल्यांकन करने लगे।
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क्रांति के कारण
राजा के दैवीय सिद्धांत का समर्थक और मानवाधिकारों का घोर विरोधी था। उसने मानव अभिव्यक्ति स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं उसने चर्च की शक्ति में पुनर्वृद्धि करना शुरू किया, शिक्षा देने का अधिकार चर्च को पुनः लौटा दिया गया। कैथोलिक धर्म-विरोधी अध्यापकों को हटा दिया गया।