History, asked by kishankumarnetam0022, 3 months ago

18 सो 57 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार समस्त कारणों का वर्णन कीजिए​

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Answered by loknathmiri13
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Explanation:

1857 के विद्रोह का प्रमुख राजनीतिक कारण ब्रिटिश सरकार की 'गोद निषेध प्रथा' या 'हड़प नीति' थी। यह अंग्रेजों की विस्तारवादी नीति थी जो ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी के दिमाग की उपज थी। कंपनी के गवर्नर जनरलों ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने के उद्देश्य से कई नियम बनाए।

Answered by NEERAJSINGH9695
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Answer:

1857 का संग्राम: जानें आजादी की पहली लड़ाई के बारे में ये खास बातें

नई दिल्ली

1857 का संग्राम ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़ी और अहम घटना थी। इस क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई। क्रांति की शुरुआत तो एक सैन्य विद्रोह के रूप में हुई, लेकिन समय के साथ उसका स्वरूप बदल कर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध एक जनव्यापी विद्रोह के रूप में हो गया, जिसे भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा गया।

आजादी की पहली लड़ाई के इस वर्षगांठ के मौके पर इससे जुड़ी खास बातें जानते हैं...

19वीं सदी की पहली आधी सदी के दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा हो चुका था। जैसे-जैसे ब्रिटिश शासन का भारत पर प्रभाव बढ़ता गया, वैसे-वैसे भारतीय जनता के बीच ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष फैलता गया। प्लासी के युद्ध के एक सौ साल बाद ब्रिटिश राज के दमनकारी और अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ असंतोष विद्रोह के रूप में भड़कने लगा जिसने भारत में ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की बात करें तो इससे पहले देश के अलग-अलग हिस्सों में कई घटनाएं घट चुकी थीं। जैसे कि 18वीं सदी के अंत में उत्तरी बंगाल में संन्यासी आंदोलन और बिहार एवं बंगाल में चुनार आंदोलन हो चुका था। 19वीं सदी के मध्य में कई किसान आंदोलन हुए जिनमें मालाबार के मोपलाह किसानों और बंगाल के मुस्लिम किसानों द्वारा फराइजी आंदोलन अहम हैं।

19वीं सदी के पहले 5 दशकों में कई जनजाति विद्रोह भी हुए जैसे मध्य प्रदेश में भीलों का, बिहार में संथालों और ओडिशा में गोंड्स एवं खोंड्स जनजातियों का विद्रोह अहम था। लेकिन इन सभी आंदोलन का प्रभाव क्षेत्र बहुत सीमित था यानी ये स्थानीय प्रकृति के थे। अंग्रेजों के खिलाफ जो संगठित पहला विद्रोह भड़का वह 1857 में था। शुरू में तो यह सिपाहियों के विद्रोह के रूप में भड़का लेकिन बाद में यह जनव्यापी क्रांति बन गया।

भारत में ब्रिटिश सेना में 87 फीसदी से ज्यादा भारतीय सैनिक थे। उनको ब्रिटिश सैनिकों की तुलना में कमतर माना जाता था। एक ही रैंक के भारतीय सिपाही को यूरोपीय सिपाही के मुकाबले कम वेतन दिया जाता था। इसके अलावा भारतीय सिपाही को सूबेदार रैंक के ऊपर प्रोन्नति नहीं मिल सकती थी। इसके अलावा भारत में ब्रिटिशन शासन के विस्तार के बाद भारतीय सिपाहियों की स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई। उनको अपने घरों से काफी दूर-दूर सेवा देनी पड़ती थी। 1856 में लार्ड कैनिंग ने एक नियम जारी किया जिसके मुताबिक सैनिकों को भारत के बाहर भी सेवा देनी पड़ सकती थी।

29 मार्च, 1857 ई. को मंगल पांडे नाम के एक सैनिक ने 'बैरकपुर छावनी' में अपने अफसरों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, लेकिन ब्रिटिश सैन्य अधिकारियों ने इस सैनिक विद्रोह को सरलता से नियंत्रित कर लिया और साथ ही उसकी बटालियन '34 एन.आई.' को भंग कर दिया। 24 अप्रैल को 3 एल.सी. परेड मेरठ में 90 घुड़सवारों में से 85 सैनिकों ने नए कारतूस लेने से इंकार कर दिया। आज्ञा की अवहेलना के कारण इन 85 घुड़सवारों को कोर्ट मार्शल द्वारा 5 वर्ष का कारावास दिया गया। 'खुला विद्रोह' 10 मई, दिन रविवार को सांयकाल 5 व 6 बजे के मध्य प्रारम्भ हुआ। सर्वप्रथम पैदल टुकड़ी '20 एन.आई.' में विद्रोह की शुरुआत हुई, उसके बाद '3 एल.सी.' में भी विद्रोह फैल गया। इन विद्रोहियों ने अपने अधिकारियों के ऊपर गोलियां चलाई। मंगल पांडे ने 'हियरसे' को गोली मारी थी, जबकि 'अफसर बाग' की हत्या कर दी गई थी। मंगल पांडे को 8 अप्रैल को फांसी दे दी गई। 9 मई को मेरठ में 85 सैनिकों ने नई राइफल इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया जिनको नौ साल जेल की सजा सुनाई गई।

इस घटना के बाद मेरठ छावनी में विद्रोह की आग भड़क गई। 9 मई को मेरठ विद्रोह 1857 के संग्राम की शुरुआत का प्रतीक था। मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी और जेल को तोड़ दिया। 10 मई को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर, 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार और झांसी में भी फैल गया। अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया। 21 सितंबर, 1857 ई. को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया, परन्तु संघर्ष में 'जॉन निकोलसन' मारा गया और लेफ्टिनेंट 'हडसन' ने धोखे से बहादुरशाह द्वितीय के दो पुत्रों 'मिर्ज मुगल' और 'मिर्ज ख्वाजा सुल्तान' एवं एक पोते 'मिर्जा अबूबक्र' को गोली मरवा दी। लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत 4 जून, 1857 ई. को हुई। यहां के क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा ब्रिटिश रेजिडेंसी के घेराव के बाद ब्रिटिश रेजिडेंट 'हेनरी लॉरेन्स' की मृत्यु हो गई। हैवलॉक और आउट्रम ने लखनऊ को दबाने का भरकस प्रयत्न किया, लेकिन वे असफल रहे। आखिर में कॉलिन कैंपवेल' ने गोरखा रेजिमेंट के सहयोग से मार्च, 1858 ई. में शहर पर अधिकार कर लिया। वैसे यहां क्रांति का असर सितंबर तक रहा।

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