1848 तमे ख़िस्ताब्दे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।।
सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखर विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्धरणं अवारयन्। सावित्री एतत् अपमानं सोढं नाशक्नोत्। सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।
शब्दार्थ : कन्यानां कृते-कन्याओं के लिए। आरभत-आरम्भ किया। अस्पृश्यत्वात्-छुआछूत के कारण से। तिरस्कृतस्य-अपमानित (का)। समुदायस्य-समूह की। पृथक्तया-अलग से। अपरः-दूसरा। प्रारब्धः-आरम्भ किया। मुखरम्-तेज़ (जोर-शोर से)। शिरोमुण्डनस्य-सिर के मुंडन का। निराकरणाय-दूर करने के लिए।। साक्षात्-स्वयम्। नापितैः-नाइयों से। फलतः-फलस्वरूप। रूढौ-रूढ़ि में, रिवाज़ में। सहभागिताम्-सहयोग को। निकषा-पास। शीर्ण-फटा-पुराना, चिथड़ा। वस्त्रावृता (वस्त्र+आवृताः)-वस्त्रों से लिपटीं। निम्नजातीयाः-नीची जाति की। पातुम्-पीने के लिए। याचन्ते स्म-माँग रही थीं। उपहासम्-मज़ाक को। कुर्वन्तः-करते हुए। जलोद्धरणम् (जल+उद्धरणम्)-पानी निकालने को। अवारयन्-रोक रहे थे। सोढुम् (सह्+तुमन्)-सहने के लिये। नीतवती-ले आई। तडागम्-तालाब को। दर्शयित्वा-दिखाकर। यथेष्टम् यथा+इम्)-इच्छानुसार। नयत-ले जाओ। सार्वजनिकः-सभी लोगों के लिए। समर्थितः-समर्थन किया।
सरलार्थ : सन् 1848 ईस्वीय वर्ष में पुणे (पूना) नगर में सावित्री ने ज्योतिबा जी के साथ कन्याओं (लड़कियों) के लिए राज्य का पहला विद्यालय प्रारम्भ किया। उस समय वह केवल सत्रह साल की थी। सन् 1851 ईस्वीय वर्ष में छुआछूत के कारण अपमानित किए गए समूह की लड़कियों के लिए अलग से उन्होंने दूसरा विद्यालय आरम्भ किया। सामाजिक (समाज से सम्बन्धित) बुराइयों का सावित्री ने ज़ोर-शोर से विरोध किया। विधवाओं के सिरों को मुंडवाने का निराकरण (प्रथा बंद करने के लिए) के लिए वह स्वयं नाइयों से मिलीं। फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज़ में अपनी भागीदारी छोड़ दी। एक बार सावित्री ने देखा कि कुएँ के पास फटे हुए वस्त्रों में लिपटी कथित नीची जाति की कुछ स्त्रियाँ जल पीने के लिए माँग रही थीं। ऊँची जाति की स्त्रियाँ मज़ाक करती हुई कुएँ से पानी पिलाने को मना कर रही थीं। सावित्री इस अपमान को सह न सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले आई और तालाब दिखाकर कहा कि इच्छानुसार पानी (घर) ले जाओ। यह तालाब सब लोगों के लिए है। यहाँ से जल (पानी) लेने में जाति का बन्धन नहीं है। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का समर्थन हमेशा पूरी तरह से किया।
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savithri bhai pule is first lady teacher
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nice answer ☺️☺️
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