Political Science, asked by arvindgupta93698243, 2 months ago

1857 का विप्लव ब्रिटिश शासन के पूर्ववर्ती सौ वर्षों में बार-बार घटित छोटे एवं बड़े स्थानीय विद्रोहों
का चरमोत्कर्ष था । सुस्पष्ट कीजिए । (150 शब्दों में उत्तर दीजिए)​

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Answered by swaraj785
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Answer:

Structures of unknown compounds can be determined by comparing physical properties, performing functional group tests, and checking melting points of derivatives against those of known compounds reported in the literature. Solubility properties and chemical reactivity become apparent during these qualitative tests.Can the Systematic Qualitative Analysis be substituted by identification tests for

finding out the unknown compound?Two steel glasses are stuck one inside the other. Ram tries to separate them by applying force but his effort was in vain. What should he do to separate them? Give reason

PLZ ANSWER CORRECTLYFermentation is a chemical process of breaking down a particular substance by bacteria, microorganisms, or in this case, yeast. The yeast in glass 1 was activated by adding warm water and sugar. The foaming results from the yeast eating the sucrose.

Answered by lavairis504qjio
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Explanation:

1857 के संघर्ष को लेकर इतिहासकारों के विचार एक समान नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मानना है कि 4 महीनों का यह उभार किसान विद्रोह था तो कुछ इसे सैन्य विद्रोह मानते हैं। वी.डी. सावरकर की पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस’ में इसे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना। 20वीं सदी के शुरुआती दौर के राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने इसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों का संघर्ष बताया जो कि स्वतंत्रता की प्रथम लड़ाई में परिवर्तित हो गया।

1857 का विद्रोह ब्रिटिश विस्तारवादी, शोषक एवं कराधान नीतियों, अंग्रेजों द्वारा सामाजिक प्रथाओं में हस्तक्षेप तथा अन्य प्रशासनिक अत्याचारों का सम्मिलित प्रभाव था। लॉर्ड डलहौजी की विलय की नीति तथा वेलेजली की सहायक संधि से भारत की जनता में बहुत असंतोष था। इन कारणों ने स्थानीय शासकों, सिपाहियों, ज़मींदारों, किसानों, कारीगरों, व्यापारियों और धार्मिक नेताओं को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया।

सेना में एनफील्ड राइफल का आरंभ विद्रोह का तात्कालिक कारण था, जिसके कारतूस कथित रूप से गौमांस एवं सूअर की चर्बी से बने थे और इन्हें चलाने के लिये मुँह से खोलना पड़ता था। इससे हिंदू एवं मुस्लिम दोनों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह कर दिया।

सिपाहियों ने सर्वप्रथम 10 मई, 1857 को विद्रोह किया। उसके बाद सिपाहियों ने दिल्ली के लिये कूच किया एवं बहादुर शाहजफर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया। तत्पश्चात यह विद्रोह अवध, बंगाल, रुहेलखंड, दोआब, बुंदेलखंड, मध्य बिहार एवं पूर्वी पंजाब तक फैल गया। देशी शासकों ने भी कुछ क्षेत्रों में विद्रोह का नेतृत्व किया, जैसे- कानपुर में नाना साहब, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि।

विद्रोह का मूल्यांकन:

यह अंग्रेजों के विरुद्ध प्रथम प्रतिक्रिया नहीं थी, क्योंकि भारत के पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी भागों में क्योंकि भारत के पूर्वी, दक्षिणी और पश्चिमी भागों में जनता ने पहले भी विद्रोह किया था और इसका दमन कर दिया गया था। कुल क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई एवं कुल आबादी के दसवें भाग से अधिक जनसंख्या इस विद्रोह से प्रभावित नहीं हुई क्योंकि इसका प्रादेशिक प्रसार सीमित था और मुख्य रूप से यह उत्तर भारत तक ही फैला था। इसलिये इसका स्वरूप अखिल भारतीय नहीं था।

विद्रोह के नेता क्षेत्रीय भावना और व्यक्तिगत हितों से निर्देशित थे। उदाहरण के लिये रानी लक्ष्मीबाई ने विद्रोह किया क्योंकि वे अपने दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थीं। इसके अतिरिक्त विद्रोह में उचित समन्वय और केंद्रीय नेतृत्व का अभाव था।

बड़े ज़मींदार और अवध के तालुकदार इस विद्रोह के विरुद्ध थे। साहूकारों और व्यापारियों ने अनुभव किया कि उनके आर्थिक हित ब्रिटिश संरक्षण के अंतर्गत बेहतर रूप से संरक्षित हैं। आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों का विश्वास था कि ब्रिटिश, भारत का आधुनिकीकरण करेंगे और उन्होंने विद्रोह को प्रतिगामी प्रतिक्रिया समझा।

सिख और गोरखा सैनिकों ने विद्रोह का दमन कर दिया, जिसने भारतीय सैनिकों के बीच एकता के अभाव को प्रदर्शित किया।

इसलिये आर.सी. मजूमदार ने यह निष्कर्ष निकाला कि 1857 का विद्रोह ‘न तो प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था।’ यह ब्रिटिश प्राधिकारियों के शोषक शासन के विरुद्ध आम जनता का सहज विद्रोह था। इसे सैनिकों का विद्रोह माना गया है जो धर्म हेतु संघर्ष के रूप में आरंभ हुआ। विद्रोहियों की सीमाओं एवं कमजोरियों के बाद भी उनके प्रयास राष्ट्रीय आंदोलन के लिये प्रेरणा के स्रोत बने रहे।

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