1857 के विद्रोह के समय उ.प्र मैं बडौत परगना के गांव वालों को किसने सगांठित किया
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it was me
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i invented an time machine and went to 1857 and organise peoples
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1857 में अंग्रेजों के खिलाफ़ सिपाही विद्रोह को पहले स्वाधीनता संग्राम के रूप में जाना जाता है.
इस संग्राम में अंग्रेजों से लड़ने के लिए साधारण किसानों ने हथियार उठा लिए, हालांकि उनके योगदान को बहुत हद तक भुला दिया गया.
लेकिन शोधकर्ताओं का एक दल अब इन किसानों से जुड़ी यादों को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लगा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के बाहरी इलाके में स्थित बिजरौल गांव में 10 मई, 2017 को 1857 के विद्रोह- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के ख़िलाफ़ विद्रोह की 160वीं वर्षगांठ पर एक छोटा सा उत्सव मनाया गया.
सिर पर तलवार के वार से मारी गई थीं रानी लक्ष्मीबाई
दौलत लुटाकर दरी के बिछौने पर सोने वाला राजा
गांव के निवासियों ने विद्रोह में उनकी भूमिका के लिए अपने पूर्वज शाह मल को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने 1857 के संग्राम में हथियार उठाने के लिए अपने आस पड़ोस के 84 गांवों के हज़ारों किसानों को हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया. लेकिन भारत के कई लोगों ने भी इस समृद्ध ज़मींदार के बारे में नहीं सुना है.
विद्रोह को दबाने के लिए बने स्वंयसेवी टुकड़ियों के दस्तावेज़ इन सर्विस एंड एडवेंचर विद द खाक़ी रिसाला में सिविल अधिकारी रॉबर्ट हेनरी वालेस डनलप ने लिखा है, "इस ज़िले के लोग यह जानने के लिए उत्साहित थे कि 'उनके राज' की जीत हुई थी या फिर हमारे राज की जीत हुई."
शाह मल असाधारण रूप से साहसी थे. उन्होंने रसद सामाग्री इकट्ठा कर विद्रोहियों को भेजा था और यमुना नदी पर नौकाओं से बनी पुल को उड़ा कर दिल्ली के ब्रिटिश मुख्यालय और मेरठ के बीच संचार काट दिया
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