1857 के विद्रोह में अफवाहों एव भविष्यवाणियों का कितना योगदान था? स्पष्ट करें|
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1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई के दिन ही हुई थी और ये देखना बेहद अचरज भरा है कि 160 साल बीत जाने के बाद भी ये भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के लेखकों को प्रेरित करता है. यही वजह है कि इस गदर पर हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में ढेरों किताबें मौजूद हैं.
इतना लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी इसके प्रति लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है. 'द टाइम्स', लंदन के नामी पत्रकार सर विलियम रसेल 1857 में भारत आए थे. वे क्रीमिया युद्ध को कवर करके यहां आए थे.
इस दौरान उन्होंने कई विचित्र रिपोर्ट लिखी थीं, जिसमें शाहजहांपुर में एक अंग्रेज भूत होने की रिपोर्ट शामिल थी. एक रिपोर्ट बिना सिर वाले घुड़सवार की थी, जो उनके मुताबिक उत्तर भारत के शहरों में हर रात देखा जाने लगा था. इसके अलावा वो जहां भी गए वहां हुई तोड़-फोड़ का ब्योरा भी उन्होंने लिखा.
1857 का विद्रोह 'दबाने' वाले की मौत
जहां दफ़न कर दिए गए 282 'भारतीय सिपाही'
1857 का विद्रोह
इमेज स्रोत,HULTON ARCHIVE
जेन रॉबिंसन की पुस्तक 'अल्बियन के एंजिल्स- भारतीय गदर की महिलाएं' भी एक दिलचस्प प्रकाशन है. इसके कुछ अंशों को रेखांकित किए जाने की ज़रूरत है.
जब दिल्ली पर सिपाहियों का कब्जा हो गया, तब कुछ विदेशी महिलाओं को भी मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा था. इनमें एक हैरियट टाइटलर भी थीं, जो कैप्टन रॉबर्ट टाइटलर की पत्नी थीं.
रॉबर्ट 38वीं नेटिव इंफेंट्री में तैनात थे, जब अंग्रेजों ने दिल्ली को खाली किया तो उनकी पत्नी आठ महीने की गर्भवती थी. उन्हें दिल्ली के घने रिज इलाके में एक बैलगाड़ी में अपने बच्चे को जन्म दिया था.
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