Hindi, asked by ag1999956, 1 year ago

1857 ke Gadar ko kisne Ek Kranti Kaha​

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Answered by cutieepragya
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योजना के मुताबिक उस दिन शाम पांच बजे आग लगने पर बजने वाला हूटर चिल्ला उठा और शोर मचाते हुए सिपाही बाहर निकल आए. आग बुझाने के लिए नहीं, लगाने के लिए’

अनुराग भारद्वाज

10 मई 2017

10 मई 1857 के गदर की आंखों देखी : एक अंग्रेज मेजर, मिर्ज़ा ग़ालिब और विष्णुभट्ट गोडसे की जुबानी

The recapture of Delhi via Kashmere Gate by the British in September, 1857.

सत्याग्रह पर ही 29 मार्च को छपे लेख में हमने पढ़ा था कि वे कौन से हालात थे, किसकी लापरवाही थी या फिर वह किसकी कथित साजिश थी कि 34 बंगाल इन्फेंट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने आक्रोशित होकर लेफ्टिनेंट बाउ पर गोली चला दी थी और बग़ावत का बिगुल फूंक दिया. हालांकि बाद में यह आग तो बुझ गई, पर चिंगारी अब भी सुलग रही थी. 1857 में आठ अप्रैल के दिन मंगल पाण्डेय को फांसी लग चुकी थी. इसने कुछ सिपाहियों के हौसले पस्त कर दिए थे, तो कुछ और भड़क गए थे. हालांकि हवाओं में यह इशारा तैरने लगा था कि जल्द ही कुछ बड़ा-भयंकर घटने वाला है. वह क्या और कैसा था, इसे इन तीन अलग-अलग लोगों के आंखों देखे वर्णन से समझा जा सकता है.

बंगाल आर्मी में तैनात मेजर जॉर्ज ब्रूस मालेसन की रिपोर्ट ‘बंगाल आर्मी का ग़दर’ के मुताबिक :

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‘विभिन्न कमांडिंग ऑफिसर्स ने यह रिपोर्ट दी कि पूरी फौज विद्रोह का मानस बना चुकी है. लखनऊ, आगरा, अम्बाला, सियालकोट, बनारस हर तरफ़ हलचल थी. इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने बंगाल आर्मी की सबसे विश्वस्त, 84 यूनिट को रंगून के लिए रवाना कर दिया. सिविल अफसर यह बात मानने को राज़ी ही नहीं थे कि उनसे गलती हुई है. वे अब भी सारे घटनाक्रम की अनदेखी कर रहे थे और मंगल पांडे की इन्फेंट्री यूनिट को बर्खास्त नहीं किया गया था.

आग धीरे-धीरे बढ़ रही थी. तीन मई को एक चिट्ठी पकड़ी गयी जिसमें एक यूनिट के सैनिक नाफ़रमानी को हर यूनिट में फैलाने की बात कर रहे थे. उधर मेरठ कैंटोनमेंट में किसी ने अफवाह उड़ा दी कि फौजियों को दी जाने वाली रोटी के आटे में अंग्रेजों ने गाय की हड्डियां मिला दी हैं. हालात उस दिन के बाद तेजी से ख़राब होते चले गए जब तीन कैवेलरी (घुड़सवार) यूनिट के जवानों को नाफ़रमानी की सज़ा सुनाई गयी. बाक़ी के जवानों में आक्रोश भर गया और उन्होंने अंतिम फैसला कर लिया.

10 मई 1857, इतवार की शाम अंग्रेज़ अफसर चर्च जाने की तैयारी कर रहे थे. बैरकें खामोश थीं. कहीं कोई हलचल नहीं. तभी पांच बजे, प्लान के मुताबिक़, आग लगने पर बजने वाला हूटर चिल्ला उठा और शोर मचाते हुए सिपाही बाहर निकल आये. आग बुझाने के लिए नहीं, लगाने के लिए. बंगाल आर्मी ने विद्रोह कर दिया था!

यूनिट के जवान जेल की तरफ भागे और अपने कैदी साथियों को आज़ाद करा लिया. हर तरफ अफरा-तफरी मच गयी और इसी बीच बाग़ी सिपाहियों के सामने कर्नल फिनिस आ गया. उसे गोली मार दी गयी! सिपाही अब तक बेलगाम होकर कैंटोनमेंट में घूम-घूमकर अंग्रेज़ अफ़सरों के घरों की तलाशी लेने लग गए. बच्चा, बूढ़ा, जवान या औरत, जो भी अंग्रेज़ सामने आया उसे मार दिया गया. कुछ ही घंटों में मेरठ छावनी बागियों के कब्ज़े में थी.

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दिन ढ़ल चुका था. योजना के मुताबिक़ बागियों ने दिल्ली का रुख कर लिया. उधर मेरठ में कुछ वफादार सिपाहियों ने दिल्ली की सुरक्षा में तैनात ब्रिगेडियर ग्रेव्स को खबरदार कर दिया था. मेरठ और दिल्ली के बीच का फासला कोई चालीस मील है. बीच में हिंडन नदी बहती है. ब्रिगेडियर ने नदी पर बने पुल को तोड़ने की रणनीति बनाई जिससे बढ़ते हुए बागियों को रोका जा सके. लेकिन मई के महीने में हिंडन में पानी कम ही होता है लिहाज़ा, बागियों को पुल के होने, न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता और फिर यदि दिल्ली में रहने वाले अंग्रेजों को भागना पड़ा तो पुल के न होने से मुश्किल हो सकती थी. इसलिए उसने अपनी रणनीति बदल दी.

अल सुबह, यानी 11 मई को बाग़ी सिपाही दिल्ली के कश्मीरी गेट के बाहर ब्रिगेडियर ग्रेव्स की सेना के सामने थे. ब्रिगेडियर की सेना के ज़्यादातर सैनिकों ने पाली बदल ली. बाकी बचे सैनिकों के साथ दिल्ली पर कब्ज़ा रखना उसके लिए मुश्किल हो गया. बाग़ी दिल्ली में दाख़िल हो गए. बहादुर शाह ज़फर की सुरक्षा में तैनात कप्तान डगलस और ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेंट साइमन फ्रेज़र को बेरहमी से मार दिया गया. किले के अंदर और आसपास अंग्रेज औरतों और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया.

ब्रिगेडियर अब भी मोर्चे पर डटा हुआ था. उसकी आख़िरी कोशिश थी कि आयुध खाने को बचा लिया जाए. आयुध खाने की सुरक्षा में तैनात लेफ्टिनेंट विलेबी ने आत्मघाती प्लान बनाया. वह जाकर आयुध खाने में छिप गया. जब बड़ी तादाद में बाग़ी अंदर घुस आये तो उसने खुद को उड़ा दिया और साथ में दो हज़ार बाग़ी भी मारे गए! जब ब्रिगेडियर ग्रेव्स ने धमाके आवाज़ सुनी तो वो समझ गया कि अब दिल्ली हाथ से निकल गयी है. उसने बचे-खुचे अंग्रेज़ बच्चों और औरतों को दिल्ली से भगा दिया. बागियों ने बहादुर शाह ज़फर को हिंदुस्तान का बादशाह घोषित कर दिया और इसके साथ ही दिल्ली उनके कब्जे में थी!

I hope it's helpful for u dear ☺️☺️

Answered by vikasbarman272
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1857 के गदर को कार्ल मार्क्स ने क्रांति कहा था l

  • 1857 की क्रांति का स्वर्णिम इतिहास ही अनेक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणादायी बना।
  • यह क्रांति तब हुई जब नेटवर्क में बहुत विकसित सुविधाएं नहीं थीं, केंद्र में अंग्रेजों की सत्ता को हिला देने वाला कोई नेतृत्व नहीं था, और कोई संगठित समूह या निश्चित योजना नहीं थी, जिससे क्रांति को सफल बनाया जा सके। लेकिन फौजी वर्ग से लेकर आम लोगों तक में अंग्रेजों के खिलाफ फैला गुस्सा अपना निशाना दिखने लगा था।
  • उस समय ही शासक वर्ग से लेकर सैनिक, मजदूर, किसान और यहां तक कि कुछ कबीलों ने भी स्वतंत्रता और स्वायत्तता के महत्व को समझा। यह क्रांति असफल जरूर हुई थी लेकिन इसने देश के सुनहरे भविष्य की नींव रख दी थी।
  • कार्ल मार्क्स (1818 - 1883) एक जर्मन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, राजनीतिक सिद्धांतकार, समाजशास्त्री, पत्रकार और वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापक थे।

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