English, asked by meenavishalsingh79, 2 months ago

18वीं और 19वीं सदी में नारी राष्ट्र का रूप कैसे बनी​

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Answered by sumairamalick03
5

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Answered by llitzurking01ll
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रेगुलेशन एक्ट द्वारा शिशु-हत्या पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई, पर ये सभी कदम और प्रयास बेकार चले गये और महिलाओं से सम्बंधित कुरीतियाँ समाज में जस की तस बनी रहीं. महिलाओं की दशा में सुधार लाने के लिए सबसे पहले संगठित प्रयास राजा राम मोहन राय ने किया. उन्होंने वैचारिक आन्दोलन चलाये जाने के साथ-साथ व्यावहारिक स्तर पर भी कई प्रयास किये. उन्होंने बहुविवाह, कुलीनवाद तथा सती-प्रथा आदि का विरोध करने के अतिरिक्त स्त्रियों को सम्पत्ति में उत्तराधिकारी बनाने की भी वकालत की. उनके लगातार प्रयास का ही यह परिणाम था कि लॉर्ड बैंटिक ने 4 दिसम्बर, 1829 ई. को अधिनियम -17 पारित कर सती-प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया. समकालीन समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर ने विधवा-विवाह को सामाजिक एवं कानूनी मान्यता दिलाये जाने के लिए आजीवन प्रयास किये. उनके प्रयासों का ही प्रतिफल था कि 1856 ई. में हिन्दू विधवा-पुनर्विवाह कानून के रूप में देखी जा सकती है. इसकी व्याख्या दो आधारों पर की जा सकती है – एक, सती-प्रथा के उन्मूलन के साथ समाज सुधार के लिए सरकारी विधि-निर्माण माहौल तैयार हुआ, और दूसरा, सती-प्रथा के वास्तविक उन्मूलन के लिए विधवाओं की दशाओं में सुधार होता दिखाई देने लगा.

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