19 अवधान के अर्थ, विशेषताएँ एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
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¿ अवधान के अर्थ, विशेषताएँ एवं प्रकारों का वर्णन कीजिए ।
✎... अवधान का अर्थ, विशेषाएँ एवं प्रकार का वर्णन इस तरह होगा...
अवधान का अर्थ : अवधान से तात्पर्य है, किसी कार्य में अपना ध्यान लगाना। भारतीय दर्शन में अवधान यानी ध्यान को एक विशेष गुण माना गया है। व्यक्ति जब कोई कार्य करते समय अपनी चेतना, ज्ञानेंद्रियों और कर्मेद्रियों को एक बिंदु पर केंद्रित करता है तो उसे अवधान कहा जाता है। सरल अर्थों में कहें तो किसी भी विषय-वस्तु पर अपना ध्यान केंद्रित करने की प्रक्रिया ही अवधान कहलाती है।
अवधान की विशेषता...
- चंचलता : अवधान की प्रकृति चंचल होती है और यह हमेशा एक वस्तु से दूसरी वस्तु की और परिवर्तित होता रहता है। व्यक्ति का ध्यान किसी एक वस्तु या विचार पर बहुत अधिक समय तक नहीं टिक पाता।
- चयनात्मक प्रक्रिया : व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण में अनेक तत्वों से भरा रहता है, लेकिन वो एक समय पर केवल एक ही तथ्य पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, इसलिए अवधान में वस्तु की चयनात्मक प्रक्रिया होती है और हमें ध्यान करने के लिए एक वस्तु का चयन करना होता है।
- संकुचितता : अवधान संकुचित होता है। मानव मस्तिष्क अनेक वस्तुओं पर एक साथ ध्यान केंद्रित नहीं कर सकता।
- मानसिक सक्रियता : किसी वस्तु पर ध्यान करने के कारण मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है और वह कोई ना कोई कार्य अवश्य करता रहता है, यह अवधान की एक विशेषता है।
- प्रयोजनमूलकता : अवधान की क्रिया करना एक उद्देश्य पूर्ण कार्य है और हर अवधान का कोई ना कोई लक्ष्य अथवा प्रयोजन अवश्य होता है।
- तत्परता : अवधान की प्रक्रिया में तत्परता उसका मुख्य गुण है। अवधान के लिए व्यक्ति का मानसिक रूप से तत्पर होना एक आवश्यक गुण है। यदि व्यक्ति मानसिक रूप से तैयार नहीं है तो वह वस्तु पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाएगा।
- अन्वेषणात्मकता : अवधान की प्रक्रिया में किसी नई विषय-वस्तु को जानने का अवसर मिलता है, जिसके कारण व्यक्ति के अंदर अन्वेषणात्मक अथवा खोजी प्रवृत्ति का उदय होता है। व्यक्ति अपने अंदर की अच्छाई और बुराईयों की छानबीन करने का प्रत्यय करता रहता है।
- शारीरिक समायोजन : अवधान की प्रक्रिया समायोजन से संबंधित है। इसमें मानसिक समायोजन के साथ-साथ शारीरिक समायोजन भी होता है, जो कि ग्राहक समायोजन, शरीर मुद्रा समायोजन, मांसपेशिक समायोजन इन तीन रूपों में होता है।
- त्रिपक्षीय प्रक्रिया : अवधान की प्रक्रिया एक मानसिक कार्य होने के कारण अवधान का संबंध सीधे मन से होता है। मन के तीन विभिन्न पक्ष होते हैं, ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक पक्ष। अवधान के माध्यम से व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है, उसके अंदर भावनाओं का उदय होता है और इन सब के कारण किसी ना क्रिया का किसी क्रिया का जन्म होता है।
- विश्लेषणात्मक प्रक्रिया : अवधान के अंतर्गत विभिन्न पक्षों पर विश्लेषण और चिंतन करने का अवसर मिलता है। जिसके कारण व्यक्ति में में विश्लेषणात्मक प्रगति का जन्म होता है।
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