19. गांधीजी के अनुसार हमारा नौकर के साथ व्यवहार
कैसा होना चाहिए ?*
(1 Point)
Oi) मैत्रीपूर्ण
Oii) भाई जैसा
Answers
Answer:
ii) भाई जैसा
Explanation:
जब कभी आश्रम में किसी सहायक को रखने की आवश्यकता होती थी, तब गांधी किसी हरिजन को रखने का आग्रह करते थे। उनका कहना था, “नौकरों को हमें वेतन भोगी, मज़दूर नहीं, अपने भाई के समान मानना चाहिए। इससे कुछ कठिनाई हो सकती है, कुछ चोरियाँ हो सकती हैं, फिर भी हमारी कोशिश सर्वथा निष्फल नहीं जाएगी।”
Explanation:
संकलन: आर.डी. अग्रवाल ‘प्रेमी’। महात्मा गांधी उन दिनों सेवाग्राम आश्रम में रहते थे। एक दिन वह सुबह टहल कर लौटे तो एक कार्यकर्ता ने आकर कहा, पास की गौशाला के पास फकीर जैसा एक आदमी बैठा है। वह किसी से कुछ बात नहीं कर रहा, लेकिन उसके चेहरे से लाचारी झलक रही है। बापू उठकर उस व्यक्ति के पास पहुंचे तो चौंक उठे। बोले, ‘आप तो साबरमती आश्रम से अपने घर गए थे। यहां कैसे और वह भी इस अवस्था में? सीधे मेरे पास क्यों नहीं आए?
आगंतुक ने कहा, ‘बापू मुझे कुष्ठ रोग हो गया है। समाज मुझे अपनाने को तैयार नहीं। आपके आश्रम में रहने की बात कहते भी मुझे संकोच हो रहा है। मैं बस आपके आसपास रहते हुए मरना चाहता हूं।’ बापू बोले, ‘आप ऐसी बात न करें। आपको यूं मरने नहीं दिया जाएगा।’ इतना कहकर बापू उस समय तो अपनी कुटिया में लौट आए, पर उनके अंदर द्वंद्व शुरू हो चुका था। आश्रम में अन्य लोग भी रह रहे थे। उनकी सहमति-असहमति का भी सवाल था। दूसरी तरफ मानवता की सेवा का उनका व्रत था।
काफी सोच-विचार के बाद बापू ने फैसला किया कि किसी भी सूरत में वह अपने व्रत से पीछे नहीं हटेंगे। सो, उन्होंने अपनी कुटिया से थोड़ा हटकर एक नई कुटिया बनवाई। वहां उन आगंतुक को रखा गया। बापू ने उनके शरीर से मवाद साफ करने का कठिन काम अपने हाथ में रखा। अन्य आश्रमवासी भी उनकी सेवा में हाथ बंटाने लगे। सबकी सेवा से उनकी हालत सुधरने लगी। अब वह खाली समय में आश्रम के बच्चों को संस्कृत पढ़ाया करते। वह रोगी और कोई नहीं बल्कि संस्कृत के प्रकांड पंडित परचुरे शास्त्री थे। उन्हें बचाया नहीं जा सका, लेकिन उनके जरिए बापू ने यह संदेश जरूर दिया कि असाध्य रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों के साथ मानव समाज को कैसा व्यवहार करना चाहिए।
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