1917 की रूसी क्रांति के कारणों को समझाइए
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Explanation:
रूसी क्रांति के कारण
निरंकुश राजतंत्र एवं स्वेच्छाचारी शासक
रूस में निरंकुश व दैवीय सिद्धांत पर आधारित शासन था जिसका संचालन कुलीन, वंशानुगत सामंत वर्ग के माध्यम से किया जाता था।
नौकरशाही वंशानुगत एवं भ्रष्ट थी तथा जनता का शोषण करने वाली थी।
जार निकोलस-I के शासनकाल में यह निरंकुशता अपने चरम पर पहुँच गई फलत: असंतोष और उग्र हो गया।
सामाजिक-आर्थिक विषमता:
फ्राँस की तरह यहाँ भी सामंत व पादरियों का विशेषाधिकार युक्त वर्ग तथा किसान व मज़दूरों के रूप में अधिकारहीन वर्ग मौजूद था। इनके मध्य अत्यंत तनाव व्याप्त था।
इस सामाजिक-आर्थिक विषमता के विरुद्ध असंतोष देखा गया।
किसानों की दयनीय स्थिति:
रूस में सर्वाधिक संख्या में किसान मौजूद थे किंतु उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय थी।
भूमि का 67% हिस्सा सामंतों के पास था तो वहीं 13% हिस्सा चर्च के पास। किसान खेतों में मज़दूरों की तरह कार्य करते थे।
हालाँकि वर्ष 1861 में रूस में दास प्रथा का उन्मूलन हो गया था किंतु व्यावहारिक रूप में अभी भी वह मौजूद थी।
इन सबके चलते किसान व मज़दूर वर्ग में भी विद्रोही भावना ने जन्म लिया।
श्रमिकों की दशा:
रूस में औद्योगीकरण देरी से हुआ और सीमित रहा।
अर्थव्यवस्था में विदेशी पूंजी निवेश के कारण विदेशी पूंजीपतियों ने केवल मुनाफे पर ध्यान दिया। जिसकी वजह से श्रमिकों का अत्यधिक शोषण हुआ।
मज़दूरों के लिये न ही कार्य के घंटे निर्धारित थे और न ही न्यूनतम वेतन और सुविधाएँ।
प्रजातांत्रिक दल ने उन्हें संगठित कर क्रांति के लिये तैयार किया।
समाजवादी विचारधारा का प्रसार:
समावादी विचारधारा के प्रसार के चलते रूस में कई समाजवादी संगठन अस्तित्व में आए।
समाजवादी क्रांतिकारी दल: इसने कृषक हित के मुद्दों पर आवाज़ उठाकर लोकप्रियता हासिल की।
समाजवादी प्रजातांत्रिक दल: इसने मज़दूरों के हितों की बात की।
चूँकि समाजवादी विचारधारा जाति, धर्म आदि को महत्त्व नहीं देती, अत: जब जार निकोलस ने रूसी जाति पर बल देते हुए रूसीकरण की नीति अपनाई तो गैर रूसी जाति की जनता भी समाजवादी लहर में शामिल हो गई।
बौद्धिकों की भूमिका
गोर्की, टॉलस्टॉय जैसे विचारकों और लेखकों ने रूसी जनता को जागरूक करने का कार्य किया।
गोर्की ने ‘द पहर’ नामक पुस्तक के माध्यम से लोगों में राष्ट्रवादी भावना का प्रसार किया।
टॉलस्टॉय ने ‘वॉर एण्ड पीस’ की रचना के माध्यम से रूसी जनता में सम्मान की भावना जाग्रत की।
रूस एवं जापान युद्ध
जब जापान ने चीन के मंचूरिया क्षेत्र पर आक्रमण किया तो इसी दौरान रूसी सेना से उसकी भिड़ंत हुई और रूसी सेना पराजित हो गई।
इससे राजतंत्र की कमज़ोरी उजागर हो गई और पीड़ित जनता जार के विरुद्ध उठ खड़ी हुई।
सामाजिक, आर्थिक एवं सैनिक स्तर पर कमज़ोरी को दूर करने के लिये जनता ने एक प्रतिनिधि सदन ड्यूमा के गठन की मांग की।
अपनी मांगों के समर्थन में रूसी जनता ने पीटर्सबर्ग में शांतिपूर्ण जुलूस निकाला, जिस पर जार ने गोली चलवा दी जिससे जनता और उग्र हो गई तथा नागरिक अधिकारों हेतु जार को ड्यूमा के गठन की अनुमति देनी पड़ी।
ड्यूमा का अस्तित्व जार की इच्छा पर निर्भर था, अत: उसने बार-बार इसे नष्ट किया और लोकतंत्र कायम नहीं हो सका। अत: वर्ष 1905 की इस घटना को वास्तविक क्रांति नहीं कहा जा सकता।
तात्कालिक कारण
रूस ने साम्राज्यवादी लाभ लेने के उद्देश्य से मित्र राष्ट्रों के पक्ष में प्रथम विश्वयुद्ध में भागीदारी की। इसके चलते उसे निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ा-
रूस ने बड़ी मात्रा में सैनिकों की भर्ती तो की किंतु पर्याप्त मात्रा में हथियार उपलब्ध नहीं कराए और न ही वेतन दिया, इससे सैनिकों में असंतोष बढ़ो गया।
परिवहन के साधन युद्ध कार्यों में लगाए गए थे जिससे उद्योगों के परिचालन में बाधा उत्पन्न हुई और आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ।
वर्ष 1916-17 में पड़े भीषण अकाल से खाद्यान्न संकट उत्पन्न हुआ जिससे जनता आक्रोशित हुई तथा अंततः यह आक्रोश रूसी क्रांति में परिणत हो गया।