1917 me bharat pahali jut mil kaha bana
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भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 19वीं शताब्दी तक यह उद्योग कुटी एवं लघु उद्योगों के रूप में विकसित था एवं विभाजन से पूर्व जूट उद्योग के मामले में भारत का एकाधिकार था। विशेष रूप से कच्चा जूट भारत से स्कॉटलैंड भेजा जाता था। जहाँ से टाट-बोरियाँ बनाकर फिर विश्व के विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं, जोकि विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत थी। यह निर्यात व्यापार जूट उद्योग का जीवन रक्त था। दुनिया के प्रायः सभी देशों में जूट निर्मित उत्पादों की माँग हमेशा बनी रहती है। अतः आज भी भारत में जूट को ‘सोने का रेशा’ कहा जाता है।
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