Sociology, asked by rumaanahashmi1492, 1 year ago

1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची बनाइए। इसके बाद उनमें से किन्हीं तीन को चुन कर उनकी आशाओं और संघर्षों के बारे में लिखते हुए यह दर्शाइए कि वे आंदोलन में शामिल क्यों हुए।

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Answered by nikitasingh79
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उत्तर :  

1921 में असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाले सभी सामाजिक समूहों की सूची निम्नलिखित है :  

विद्यार्थी , शिक्षक,  वकील, महिलाएं, व्यापारी , कारखाना श्रमिक , बागा़न मजदूर , किसान , उद्यमी जिनमें बढ़ाई, धोबी आदि शामिल थे तथा आदिवासी।  

विभिन्न सामाजिक समूह के संघर्ष तथा आशाएं :  

असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाले सभी सामाजिक समूह को अपनी अपनी आशाएं तथा आकांक्षाएं थी।उनके संघर्ष भी उनकी आशाओं के अनुरूप थे। कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों के संघर्ष तथा आशाओं का वर्णन निम्नलिखित है :  

(क) अवध के किसान :  

अवध के किसानों का नेतृत्व सन्यासी बाबा रामचंद्र कर रहे थे।  उनका आंदोलन तालुकदार और जमींदारों के विरुद्ध था  जो किसानों से भारी भरकम लगान और विभिन्न प्रकार के कर वसूलते थे। किसानों को बेगार भी करनी पड़ती थी। पट्टेदार के रूप में किसानों के पट्टे निश्चित नहीं होते थे। उन्हें बार-बार पट्टे की जमीन से हटा दिया जाता था ताकि जमीन पर उनका अधिकार स्थापित न हो सके। वह अपनी इन्हीं समस्याओं को लेकर असहयोग आंदोलन में शामिल हुए।  उनकी मांग थी कि लगान काम लिया जाए , बेगार समाप्त हो तथा जमीदारों का सामाजिक बहिष्कार किया जाए।

अपनी मांगे मनवाने के लिए उन्होंने अपना संगठन बना लिया । 1921 में जब असहयोग आंदोलन शुरू हुआ तो किसान तालुको दारू तथा जमीदारों के मकानों पर हमले करने लगे। बाजारों  में लूटपाट होने लगी और अनाज के गोदामों पर कब्जा कर लिया गया । उन्हें  शांत करने के लिए स्थानीय नेताओं ने यह कहा कि गांधीजी ने घोषणा कर दी है कि अब कोई लगान नहीं भरेगा और जमीन गरीबों में बांट दी जाएगी । अतः गांधी जी के नाम पर अवध के किसानों ने अपनी कार्यवाही तथा आकांक्षाओं को सही ठहराया।

(ख) आदिवासी किसान :  

आदिवासी किसानों ने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन का अपना ही अर्थ निकाला। इनका नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया इनके समस्याएं थी :  

(1) बड़े-बड़े जंगलों में लोगों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी। वे न तो वहां पर अपने मवेशियों को चरा सकते थे और न ही जलावन के लिए लकड़ी बिन सकते थे।  इससे उनकी रोजी-रोटी पर असर पड़ रहा था।  

(2) सरकार उन्हें सड़क निर्माण के लिए बेगार करने पर भी मजबूर कर रही थी।

इन समस्याओं के कारण गूडेम विद्रोहियों ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया। उनका मानना था कि भारत अहिंसा के बल पर नहीं बल्कि केवल बल प्रयोग द्वारा ही स्वतंत्र हो सकता है । इसलिए गूडेम विद्रोहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों को मारने की कोशिश की , पुलिस थानों पर हमले किए तथा गुरिल्ला युद्ध पद्धति जैसे तरीके अपनाएं।  

(ग) बागा़न मजदूर :  

असम में बागान मजदूरों के लिए स्वतंत्रता का अर्थ यह था कि वे स्वतंत्र रूप से बागानों से आ जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त वे अपने गांव से संपर्क रख पाएंगे। बागानी मजदूरों को 1859 ईसवी के ‘इंग्लैंड इमीग्रेशन एक्ट’ के अंतर्गत बागानों से बिना अनुमति के बाहर जाने की मनाही थी।  अतः उन्होंने असहयोग आंदोलन में शामिल होने का निर्णय कर लिया । वह अपने अधिकारियों के निर्देशों की अवहेलना करने लगे । वह बागानों को छोड़कर अपने अपने गांव की ओर चल दिए । उन्हें ऐसा लगने लगा कि अब गांधी राज रहा है और अब सभी को गांव में जमीन मिल जाएगी। परंतु उनकी आशाएं पूरी न हो पाई। रेलवे तथा स्टीमरों की हड़ताल के कारण मार्ग वे मार्ग में ही  फंस गए।  उन्हें पुलिस ने पकड़ लिया और बुरी तरह पीटा।

आशा है कि है उत्तर आपकी मदद करेगा।

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Answered by Anjurani10031982com
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nikitasingh79 give suitable answer of given question

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