History, asked by anil7983kumar, 6 months ago

1924 में सुकेत में आलो आंदोलन क्यों हुआ​

Answers

Answered by roynivedita1980
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Explanation:

देश को आजादी तो 15 अगस्त, 1947 को मिली। मगर कुछ रियासतों ने तत्काल भारतीय गणतंत्र में विलय नहीं किया। इन रियासतों के राजा स्वतंत्र रूप से अपनी हुकूमत चलाते रहे। 1948 में सुकेत सत्याग्रह के नाम से आंदोलन इन रियासतों के भारतीय गणतंत्र में विलय को लेकर किया था। इसकी अगुवाई स्वतंत्रता सेनानियों पं. पदम देव डा. वाईएस परमार आदि ने अपने हाथों में ले रखी थी।

सुकेत रियासत की प्राचीन राजधानी पांगणा से बगावत की यह मशाल जली थी। 8 फरवरी, 1948 को सुन्नी में प्रजामंडल के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इसमें तय किया कि रियासतों के विलय को लेकर सत्याग्रह चलाया जाए। सबसे पहले सुकेत रियासत को चुना गया। इस बारे 16 फरवरी को सुकेत के राजा लक्ष्मण सेन को सूचना दी गई कि वे 48 घंटे के अंदर राजसत्ता जनता को सौंप दे। इसी बीच पं. पदमदेव की अध्यक्षता में तत्तापानी में सत्याग्रहियों की एक बैठक हुई। जब सुकेत के राजा की ओर से कोई जवाब नहीं मिला तो करीब एक हजार लोगों का जत्था सुकेत रियासत पर कब्जा करने को निकला। इसमें आजाद हिंद फौज के पूर्व सिपाही भी शामिल थे। इस जत्थे ने सबसे पहले फेरनू चौकी पर कब्जा कर लिया। पुलिस रियासत की पुलिस ने सत्याग्रहियों के आगे हथियार डाल दिए। तिंरगा हाथ में लिए राष्ट्रीय गीत गाते हुए करसोग की ओर रवाना हुआ और काऊिपला बढ़ता गया। अब इस जत्थे में दो हजार लोग शामिल हो गए थे।

करसोग में जनता का राज स्थापित करने के बाद सत्याग्रहियों ने 19 फरवरी, 2012 को सुकेत की प्राचीन राजधानी पांगणा पर कब्जा कर लिया। सत्याग्रहियों ने 20 फरवरी को निहरी पर विजय प्राप्त कर ली। 23 फरवरी को जयदेवी पर कब्जा करने के बाद सत्याग्रहियों ने राज्य के तीन चौथाई हिस्से पर कब्जा कर लिया था। दूसरी ओर डैहर में भी विद्रोह हो गया। राजा ने घबरा कर भारत सरकार से मदद मांगी। सरकार के नेताओं ने साफ शब्दों में कहा कि भारत का अंग बने बिना भारत सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। आखिरकार सुकेत के राजा ने विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। सुकेत सत्याग्रह की सफलता के बाद अन्य रियासतों चंबा, सिरमौर और बिलासपुर के राजाओं पर भी विलय का दबाव पड़ने लगा। 15 अगस्त, 1948 तक इन सभी रियासतों का विलय भारतीय गणतंत्र में हो गया था।

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Answered by krishnaanandsynergy
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सुकेत के लोग 1862 और 1876 में सम्राट और उनके मंत्री नरोत्तम के खिलाफ उठ खड़े हुए थे।

सुकेत सत्याग्रह:

  • 1924 में सुकेत राज्य में दंगे हुए, जिससे राजा को देहरादून भागना पड़ा।
  • विद्रोह के निम्नलिखित कारण थे:
  1. कुशासन
  2. टैक्स ज्यादा हैं।
  3. बेगार प्रणाली की व्यापकता
  • 1945 में, सुकेत रियासती प्रजा मंडल (SRPM) की स्थापना की गई, जिसके पहले अध्यक्ष मियां रतन सिंह थे।
  • एसआरपीएम ने जवाबदेह प्रशासन की वकालत की, लेकिन राजा ने दमनकारी तरीकों से इसे दबा दिया।
  • अंत में, फरवरी 1948 में, हिमालय प्रांत अनंतिम सरकार ने सुन्नी (भज्जी राज्य) में बुलाई और केंद्र के नियंत्रण में लोकतांत्रिक गुणों के साथ एक पूर्ण प्रांत स्थापित करने का संकल्प लिया।
  • इसका प्रारंभिक लक्ष्य सुकेत होना तय किया गया था।

#SPJ2

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