1942 के एक स्वतंत्रता सेनानी के बारे में निबंध लिखिए
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भारत की आजादी की लड़ाई में यूं तो लाखों-करोड़ों हिंदुस्तानियों ने भाग लिया लेकिन कुछ ऐसे सपूत भी थे जो इस आजादी की लड़ाई के प्रतीक बनकर उभरे। राष्ट्रधर्म की खातिर क्रांति की पहली गोली चलाने वाले को भले ही तोपों से उड़ा दिया गया लेकिन जो चिंगारी उन्होंने लगाई उस आग में तपकर निकले स्वाधीनता सेनानियों ने अपने अहिंसक आंदोलन से अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
आजादी की महागाथा में उन युवा महानायकों को भी याद रखा जाएगा जिन्होंने बहरे कानों को सुनाने के लिए धमाके किए तो किसी ने देश के लिए 'आजाद' शहीद होना चुना। खून के बदले आजादी के नारों के साथ सेना का गठन कर शक्तिशाली बरतानवी साम्राज्य को चुनौती देने का साहस करने वाले वीरों और भारत को खंडित होने से बचाने वाले फौलादी इरादों से ही इस स्वतंत्र भारत की नींव पड़ी है, आइए एक नजर डालते हैं आजादी के इन मतवालों पर..
मंगल पांडे
जन्म - 30 जनवरी 1827 बलिया, उत्तर प्रदेश
मृत्यु - 8 अप्रैल 57, बैरकपुर
बैरकपुर छावनी में बंगाल नेटिव इंफैंट्री की 34वीं रेजीमेंट में सिपाही रहे, जहां गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया।