1947 के बाद औद्योगिकरण के विकास में भारत सरकार की भूमिका की चर्चा कीजिए
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स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत ने फिर से आर्थिक विकास प्रारम्भ किया। स्वतन्त्रता प्राप्ति से 1991 की अवधि के दौरान नियोजन की रणनीति में सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक संवृद्धि की दर को तीव्र गति प्रदान करने के लिये उत्पादन की प्रक्रिया के ढाचें में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। जिसमें सार्वजनिक क्षैत्र की सक्रिय भागीदारी तथा निजी क्षैत्र की नियमित नियंत्रित भागीदारी पर बल दिया गया। इसमें एकाधिकार की प्रवृतियों क निवारण हेतु एमआरटीपी जैसे प्रतिबंधात्मक कानूनों को अपनाया गया एवं प्र्रत्येक व्यक्ति के जीवन की आवश्यकताओं तक पहूच सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी विधियो को लागू किया गया। इस काल में राज्य ने हस्तक्षेपवादी राज्य की अवधारणा को अपनाते हुए महालनोबिस रणनीति के माध्यम से भारी उद्योगो पर सार्वजनिक स्वामित्व के साथ साथ छोटे पेमाने के उद्योगो को भी संरक्षण दिया गया। तथा इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वित्तीय संस्थाओं की स्थापना व हथकरघा बोर्ड रेशम बोर्ड आयात निर्यात प्रोत्साहन जैसे उपाय अपनाये गए। आंतरिक क्षैत्र में घरेलू उद्योगो को विदेशी क्षैत्र की प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा प्रदान करने के लिये आन्तरिक व्यापार रणनीति को अपनाया गया। सरकार की मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतियों का एकमात्र उद्धेश्य बचत तथा निवेश को प्रोत्साहन मानकर इसके लिये बचतकर्ताओं को करों में छूट तथा बैकिग शाखाओं के विस्तार की योजना बनाई गई। विदेशी पूंजी पर प्रतिबंध लगायेे गए। जिसके लिये फेरा कानून लागू किया गया।
1991 में राजकोषीय घाटे भुगतान शेष का संकट विदेशी विनिमय के भंडारों में गिरावट कीमतों में वृद्धि तथा सार्वजनिक क्षैत्र के उद्यमों के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण नियोजन को नई दिशा प्रदान की गई। जिसमें हुए ठौस परिवर्तनों को आर्थिक सुधारों का नाम दिया गया। इसके अंतगर्त उदारीकरण निजीकरण वैश्वीकरण की नीतियों पर विकास की नियोजन रणनीति का नियोजित किया गया।
वर्तमान में भारत ने मेक इन इंडिया, साइनिग इंडिया और विदेशी निवेश को प्रोत्साहित कर तेज गति से औधोगिक विकास कर रहा हैं।
इस प्रकार आर्थिक विकास के साथ साथ आर्थिक स्वतन्त्रता के माध्यम से देश का चहुमुखी विकास लक्ष्य रखा गया। इसमें धारणीय विकास के आधार पर निर्धारित की गई संवृद्धि भावी पीढियों तक निरंतर रखने के लिये पर्यावरण विकास प्रदूषण रोकथाम तथा प्राकृतिक संसाधनों संरक्षण पर बल देकर आज हमारा भारत विश्व में सबसे तेज आर्थिक विकास दर के साथ विकास कर रहा है।
Post independence, India has emerged as a phenomenally industrialized country. India during independence was economically dependent on the agricultural sector.
Indian economy is primarily dependent on the service sector apart from agriculture.
India is amongst the few countries which bypassed industrialization and landed directly to service sector next to agriculture.
India has emerged as the third largest economic country with its phenomenal purchasing power equality.
There were various industrial fields in which India saw limited growth until liberalization of economic growth has been better post liberalization.
Steep GDP growth after 1991 is a remarkable example. Construction: Professional engineering consultancy firms were formed, like the National Industrial Development Corporation (NIDC).
Also, many architectural, design engineering and construction companies were established in the public sector, like IRCON, NBCC, RITES, EIL etc.
Automotive: In the year 1952, the government formed the Tariff Commission, and for that purpose was to come out with the feasibility report for unionization of the Indian automobile industry.