1947 में भारत में कितने जंगल थेकिस सदी की शुरुआत में दुनिया की आबादी 1 अरब की
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दुनिया में आज बढ़ती आबादी का शोर है. जनसंख्या विस्फ़ोट के ख़तरों की चर्चा हो रही है. तमाम देश, बढ़ती आबादी पर लगाम लगाने की बातें कर रहे हैं. क़ुदरत के सीमित संसाधनों का हवाला दिया जा रहा है.
ये तो तय है कि हमारी धरती का आकार नहीं बढ़ने जा रहा. यहां मौजूद संसाधन भी अब बढ़ने वाले नहीं, जैसे पानी, खेती के लायक़ ज़मीन. जानकार अक्सर चेतावनी देते हैं कि बढ़ती आबादी, इंसानों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि धरती, कितने इंसानों का बोझ उठा सकती है? क्या वाक़ई, बढ़ती आबादी, हमारी धरती को तबाह कर देगी?
लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट के सीनियर फेलो डेविड सैटर्थवेट कहते हैं कि ऐसा नहीं है. डेविड के मुताबिक़, आबादी से ज़्यादा अहमियत इस बात की है कि आप संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं. वो महात्मा गांधी का हवाला देते हैं.
गांधी जी ने कहा था: धरती पर सबकी ज़रूरत भर का सामान है, मगर सबके लालच को पूरा करने लायक़ नहीं.