1969 ke कांग्रेस विभाजन के तीन कारण लिखो
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना सन 1885 में हुई और इसी वर्ष इसका प्रथम अधिवेषन डब्ल्यू.सी. बनर्जी की अध्यक्षता में बम्बई में सम्पन्न हुआ। दादाभाई नौराजी, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और मदनमोहन मालवीय जैसे देष के महान सपूतो ने इस संस्था की नीव रखी। यह दुनिया की सबसे पुरानी व सबसे बडी प्रजातांत्रिक राजनीतिक संस्थाओं में होने का दावा कर सकती है।
कांग्रेस की स्थापना से अब तक कई महान नेताओं ने इसी छत्रछाया में जिस लगन और निष्ठा के साथ मातृभूमि की सेवा की है, उससे अनेक भारतीयो को प्रेरणा मिली है और आने वाली पीढिया भी प्रेरित होती रहेगी। इन्हीं नेताओं के त्याग, बलिदान और निष्ठा के परिणाम स्वरूप यह महान संस्था विदेषी शासन से हमारी मातृभूमि को मुक्त करने का साधन बन सकी। कांग्रेस का इतिहास स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास के साथ-साथ देष के सामाजिक आर्थिक परिवर्तन का इतिहास है।
कांग्रेस की तेजी से प्रगति के विभिन्न कारणो में से एक यह भी रहा है कि इसमें भारत के सभी वर्गो की प्रतिनिधि थे। इनके संस्थापको, अध्यक्षो और नेताओं में अल्पसंख्यक समुदाय के मान्य नेता थे। जैसे प्रथम अध्यक्ष श्री डब्ल्यू सी. बनर्जी ईसाई थे, दूसरे अध्यक्ष श्री दादाभाई नौराजी पारसी थे और तीसरे अध्यक्ष जनाब बदरूदीन तैयबजी मुसलमान थे। शुरू से ही कांग्रेस संगठन धर्मनिरपेक्ष रहा है और स्वतंत्रता भारत में राष्ट्र के नीति निर्देषक सिद्धांत में धर्मनिरपेक्षता का स्थान अल्पसंख्यको के उस योग का परिणाम है जो उन्होंने इस महान संगठन के निर्माण में दिया है।
प्रारंभ से ही कांग्रेस का लक्ष्य संसदीय संस्थाओं की स्थपना रहा है। महान संविधान शास्त्रियों जैसे दादाभाई नौराजी , सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और गोपाल कृष्ण गोखले ने संसदीय प्रणाली वाली सरकार की स्थापना और धर्मनिरपेक्ष,बहुभाषी और बहुधर्मी राष्टवाद के विकास के लिये निरंतर परिश्रम किया। बीसवी शताब्दी के शुरू में कांग्रेसजनों ने जिनकी संख्या दीनो दिन बढती जा रही थी यह महसूस किया कि विदेषी शासक भारतीयों की मांगो की ओर बिल्कुल ध्यान नही दे रहे है अतः उग्र राष्ट्रवादी भावना में प्रथम सर्वश्री बालगंगाधर तिलक अरविन्द घोष लाला राजपत राय बौर विपिन चंद्रपार ने कहा है कि स्वराज मेरा जन्म सि़द्ध अधिकार है। लेकिन कांग्रेस में नरम नीति में विष्वास रखने वाले अनेक लोग थे। इन विचारधाराओं की टक्कर 1907 के सूरत अधिवेषन में हुई। अधिकतर कांग्रेसजनों ने लोकमान्य तिलक की नीति का समर्थन किया और नरम नीति के समर्थको को संगठन से अलग होना पडा। इस विभाजन से कांग्रेस को बल मिला। बाद में श्रीमती एनी बेसन्ट और अन्य के नेतृत्व में प्रथम विष्व युद्ध के दौरान होम रूल आंदोलन से इस आंदोलन को और नई शक्ति व स्फूर्ति मिली।