19वीं सदी के भारत में विभिन्न समुदायों, क्षेत्रों या भाषा समूह से संबंधित लोगों ने कैसे एक समझ विकसित की है ? समझाइए।
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जातीय समूह मनुष्यों का एक ऐसा समूह होता है जिसके सदस्य किसी वास्तविक या काल्पनिक सांझी वंश-परंपरा के माध्यम से अपने आप को एक नस्ल के वंशज मानते हैं।[1][2] यह सांझी विरासत वंशक्रम, इतिहास, रक्त-संबंध, धर्म, भाषा, सांझे क्षेत्र, राष्ट्रीयता या भौतिक रूप-रंग (यानि लोगों की शक्ल-सूरत) पर आधारित हो सकती है। एक जातीय समूह के सदस्य अपने एक जातीय समूह से संबंधित होने से अवगत होते हैं; इसके अलावा जातीय पहचान दूसरों द्वारा उस समूह की विशिष्टता के रूप में पहचाने जाने से भी चिह्नित होती है।[3][4]
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