History, asked by fizuk82, 6 months ago

19vi sadi me bharat me rashtrawaad​

Answers

Answered by amitkaffi1233
1

repeat the question please

Answered by crlakshita
1

Explanation:

-19वीं शताब्दी भारतीय समाज में एक नई प्रवृत्ति का साक्षी बनी जिसमें पुरातन सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं का मानव जीवन की साध्यता के आलोक में आलोचनात्मक परीक्षण शुरू हुआ, जिसने जड़ हो चुके मूल्य-मान्यताओं पर प्रहार शुरू किया और एक आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से साक्षात्कार कराया। इसी प्रवृत्ति को भारतीय पुनर्जागरण की संज्ञा दी जाती है।

भारतीय पुनर्जागरण के प्रणेता राजा राममोहन राय थे। उन्होंने सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों को दूर करने का जो कार्य प्रारंभ किया उसे ईश्वरचंद्र विद्यासागर, दयानंद सरस्वती, एम.जी. रानाडे, डेरोजियो, कार्वे इत्यादि ने आगे बढ़ाया।

इन आंदोलनों की मुख्य विशेषता यह थी कि ये अपने गौरवशाली इतिहास से प्रेरित थे तथा भेदभाव रहित समाज की स्थापना की कामना रखते थे।

दयानंद सरस्वती के ‘भारतीयों के लिये भारत’ तथा ‘वेदों की ओर लौटो’ नारों ने भारतवासियों में अपनी संस्कृति तथा इतिहास के प्रति गर्व एवं सम्मान की अनुभूति पैदा की।

19वीं सदी में प्राचीन भारतीय इतिहास की खोज की जा रही थी तथा पश्चिमी इतिहासकार भारतीय इतिहास एवं संस्कृति को निचले स्तर का बता रहे थे।

दयानंद सरस्वती एवं विवेकानंद जैसे समाज सुधारकों ने धार्मिक सुधारों के अलावा भारतीय शिक्षा को भी बढ़ावा दिया।

हिन्दू धर्म के अलावा अन्य धर्मों जैसे मुस्लिम, सिख, पारसी इत्यादि में सुधार आंदोलन हुए जो कि सामाजिक कुरीतियों को दूर करने तथा शैक्षणिक एवं बौद्धिक स्तर में सुधार से प्रेरित थे।

सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन भारतीय समाज के पश्चिमीकरण की प्रतिक्रिया स्वरूप उभरे थे जिसने भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना के विकास में अद्वितीय भूमिका निभाई, परंतु भारत में राष्ट्रवाद के उदय के लिये कई अन्य कारण भी उत्तरदायी थे, जैसे- प्रेस एवं साहित्य का विकास, भारत के आर्थिक शोषण का जनता के सामने सही चित्रण, नस्लीय भेद-भाव, संपर्क साधनों का विकास इत्यादि।

उक्त प्रवृत्ति में पाश्चात्य शिक्षा के विकास के कारण एक आधुनिक शिक्षा प्राप्त बौद्धिक वर्ग तैयार हुआ। इस वर्ग की आकांक्षाएँ औपनिवेशिक हित से तादाम्य स्थापित नहीं करती थी। अतः उक्त अंतर्विरोध के रूप में राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार-प्रसार हुआ।

राष्ट्रवाद के उदय ने भारत में स्वतंत्रता की भावना का संचार किया जिसने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की रूप-रेखा तैयार की और अंततः विदेशी सत्ता को भारत से उखाड़ फेंका। परंतु कट्टर राष्ट्रवाद के कारण संप्रदायवाद का भी उदय हुआ, जिसकी कीमत भारत को विभाजन द्वारा चुकानी पड़ी।

निष्कर्षतः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन, भारत में राष्ट्रवाद के विकास की पूर्व शर्त सिद्ध हुआ।

I hope you understood ☺️☺️

pls mark me as brainliest

Similar questions