1sanvad 2mitro ke bich apni aapsi sthiti ko le kar
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हामिद और दुकानदार का संवाद
हामिद- यह चिमटा कितने का है ?
दुकानदार- यह तुम्हारे काम का नहीं है जी।
हामिद- बिकाऊ है कि नहीं ?
दुकानदार- बिकाऊ नहीं है और यहाँ क्यों लाद लाये है ?
हामिद- तो बताते क्यों नहीं, कै पैसे का है ?
दुकानदार-छे पैसे लगेंगे।
हामिद- ठीक बताओ।
दुकानदार- ठीक-ठीक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो तो लो, नहीं तो चलते बनो।
हामिद- तीन पैसे लोगे ?
पड़ोसी और अँगनू काका का संवाद
पड़ोसी- यह पिल्ला कब पाला, अँगनू काका ?
अँगनू काका- अरे भैया, मैंने काहे को पाला। यहाँ अपने ही पेट का ठिकाना नहीं। रात में न जाने कहाँ से आ गया!
पड़ोसी- तुम इसे पाल लो, काका।
अँगनू काका- भैया की बातें !इसे पालकर करेंगे क्या ?
पड़ोसी- तुम्हारी कोठरी ताका करेगा।
अँगनू काका- कोठरी में कौन खजाना गड़ा है, जो ताकेगा।
रोगी और वैद्य
रोगी- (औषधालय में प्रवेश करते हुए) वैद्यजी, नमस्कार!
वैद्य- नमस्कार! आइए, पधारिए! कहिए, क्या हाल है ?
रोगी- पहले से बहुत अच्छा हूँ। बुखार उतर गया है, केवल खाँसी रह गयी है।
वैद्य- घबराइए नहीं। खाँसी भी दूर हो जायेगी। आज दूसरी दवा देता हूँ। आप जल्द अच्छे हो जायेंगे।
रोगी- आप ठीक कहते हैं। शरीर दुबला हो गया है। चला भी नहीं जाता और बिछावन पर पड़े-पड़े तंग आ गया हूँ।
वैद्य- चिंता की कोई बात नहीं। सुख-दुःख तो लगे ही रहते हैं। कुछ दिन और आराम कीजिए। सब ठीक हो जायेगा।
रोगी- कृपया खाने को बतायें। अब तो थोड़ी-थोड़ी भूख भी लगती है।
वैद्य- फल खूब खाइए। जरा खट्टे फलों से परहेज रखिए, इनसे खाँसी बढ़ जाती है। दूध, खिचड़ी और मूँग की दाल आप खा सकते हैं।
रोगी- बहुत अच्छा! आजकल गर्मी का मौसम है; प्यास बहुत लगती है। क्या शरबत पी सकता हूँ ?
वैद्य- शरबत के स्थान पर दूध अच्छा रहेगा। पानी भी आपको अधिक पीना चाहिए।
रोगी- अच्छा, धन्यवाद! कल फिर आऊँगा।
वैद्य- अच्छा, नमस्कार।
माँ-बेटे के बीच संवाद
बेटा- माँ, ओ माँ !
माँ- अरे, आ गए बेटा !
बेटा- हाँ माँ ....... ।
माँ- आज स्कूल से आने में काफी देर लगा दी....... ।
बेटा- हाँ माँ, आज विश्व पर्यावरण-दिवस जो था।
माँ- तो क्या कोई विशेष कार्यक्रम था तेरे स्कूल में ?
बेटा- हाँ माँ, आज हमारे स्कूल में 'तरुमित्रा' के फादर आए हुए थे।
माँ- तब तो जरूर उन्होंने पेड़-पौधों के बारे में विशेष जानकारी दी होगी।
बेटा- हाँ, उन्होंने जानकारी भी दी और हम छात्रों के हाथों पौधे भी लगवाए।
माँ- तुमने कौन-सा पौधा लगाया ?
बेटा- मैंने अर्जुन का पौधा लगाया, माँ।
माँ- बहुत खूब।
बेटा- जानती हो माँ, शिक्षक बता रहे थे कि यह पौधा ह्रदय-रोग में काम आता है।
माँ- वह कैसे ?
बेटा- इसकी छाल और पत्ते से ह्रदय-रोग की दवा बनती है।
माँ- पेड़-पौधों के बारे में शिक्षक ने और क्याक्या बताया ?
बेटा- उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं। वे हमें ऑक्सीजन देते हैं। इन्हें अपने आस-पास लगाने चाहिए।
माँ- अच्छा, अब मेरा राजा बेटा, हाथ-पाँव धोकर भोजन करेगा।
बेटा- ठीक है, माँ।
डॉक्टर और मरीज के पिता के बीच संवाद
डॉ०- देखिए सर, आपका बेटा बिल्कुल निर्दोष है। इसके चरित्र के कारण इसे यह रोग नहीं हुआ है।
पिता- तो फिर कैसे हो गया ?
डॉ०- इस रोग के फैलने के कई कारण होते हैं।
पिता- डॉ० साहब, कहीं यह रोग मच्छरों के काटने से तो नहीं होता ?
डॉ०- बिल्कुल नहीं। इसके मात्र दो कारण हैं।
पिता- क्या ........ ?
डॉ०- पहला कारण तो मैंने बताया ही 'असुरक्षित यौन-संबंध और दूसरा कारण है- किसी-न-किसी रूप में संक्रमित ब्लड से सम्पर्क होना।
पिता- डॉक्टर साहब, मेरा भी चेकप कर ही दीजिए। कहीं यह ........ ।
डॉ०- चेकप करवाने में कोई हर्ज नहीं है; परन्तु आप यह जान लें कि यह रोग छुआछूत वाला नहीं है। यह रोगी से हाथ मिलाने, उसे चूमने, एक-साथ खाने-पीने से नहीं होता।
पिता- इससे बचने का कोई तो उपाय होगा न सर ?
डॉ०- एक ही उपाय है- सावधानी।
पिता- कैसी सावधानी ?
डॉ०- अपने चरित्र पर ध्यान दें; वेश्यागमन से बचें; एक ही सीरिंज का उपयोग बार-बार अनेक लोगों के लिए नहीं हो और एक ही ब्लेड का प्रयोग भी अनेक लोगों के लिए न हों, क्योंकि एड्स एक वायरल रोग है। जब तक इसके रोगी के ब्लड से किसी दूसरे का ब्लड संक्रमित नहीं होगा, तब तक इसका वायरस फैल ही नहीं सकता।
पिता- मेरे विक्की के लिए क्या उपाय है, डॉक्टर साहब ?
डॉ०- अब एक ही उपाय है- इसे खूब लार-दुलार कीजिए; क्योंकि यह चंद दिनों का मेहमान है।
(पिता का सुबक-सुबककर रोना)
गुरुघंटाल और मस्तीलाल के बीच संवाद
गुरुघंटाल- आओ, आओ मस्ती, कहो, क्या हाल-चाल है ?
मस्तीलाल- ठीक कहाँ है गुरु ! आजकल बड़ा ही परेशान रह रहा हूँ।
गुरुघंटाल- किस बात की परेशानी ?
मस्तीलाल- बाल-बच्चों के भविष्य की चिन्ता सता रही है।
गुरुघंटाल- क्या हुआ उन्हें ? सब कुछ ठीक-ठाक तो है न ?
मस्तीलाल- ठीक क्या खाक रहेगा गुरु ! इस बार फिर मेरे दोनों बेटे इंटर फैल हो गए।
गुरुघंटाल- मैं तो कहता हूँ, छोड़ दे दोनों को पढ़ाना-लिखाना। बना दे उन्हें नेता। राजनीति में सब चलता है।
मस्तीलाल- समझ में नहीं आता कि किस पार्टी के आला-कमान से बात करूँ।
गुरुघंटाल- इसमें समझने की क्या बात है- उगते सूरज को देख और दिशा तय कर।
मस्तीलाल- तुम ठीक कहते हो गुरु, अब भाजपा-लोजपा में भी वो बात नहीं रही। आज ही जाता हूँ दिल्ली और....