(1x5=5)
1. नीचे दो गद्यांश दिए गए हैं। किसी गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता, क्योंकि अकेला रहना एक बहुत बड़ी साधना
है। जो लोग समाज या परिवार में रहते हैं, वे इसलिए रहते हैं, क्योंकि उन्हें एक-दूसरे की आवश्यकता होती है। अत:
स्वयं को समाज के लिए उपयोगी बनाना पड़ता है। ईसा ने कहा है, "जो तुममें सबसे बड़ा होगा, वह तुम्हारा सेवक
होगा।” समाज की प्रवृत्ति ऐसी है कि यदि आप दूसरों के काम आएँगे, तो समय पड़ने पर दूसरे भी आपका साथ देंगे।
अतः लोकसेवा से मनुष्य की यश पाने की आकांक्षा की भी पूर्ति हो जाती है। लोकसेवा के अनेक रूप हैं; जैसे-
देश-सेवा, साहित्य-सेवा आदि। कोई भी रचनात्मक कार्य, जिससे सार्वजनिक हित हो, वह परोपकार है। रोग, मृत्यु,
शोक, बाढ़, भूकंप, संकट, दरिद्रता, महामारी, उपद्रव आदि में कदम-कदम पर सहानुभूति दर्शाने के अवसर विद्यमान
हैं। सहानुभूति और परोपकार का अर्थ केवल दधीचि और गाँधी जैसा बलिदान ही नहीं, बल्कि दयालुता के छोटे-छोटे
कार्य, मृदुता का व्यवहार, पड़ोसियों का सहायक बनने की चेष्टा, दूसरों की भावनाओं को ठेस न पहुँचाना, दूसरों की
दुर्बलताओं के प्रति उदार होना, किसी को निर्धन न मानना आदि भी सहानुभूति से जुड़े परोपकार के ही लक्षण हैं।
(क) गद्यांश के आधार पर बताइए कि समाज के लिए उपयोगी किसे बनाना पड़ता है?
(D स्वयं को
(ii) समाज को
(iii) समय को
(iv) ये सभी
(ख) लोकसेवा से मनुष्य की कौन-सी आकांक्षा की पूर्ति हो जाती है?
ॐ यश पाने की
(ii) काम करने की
(iii) परोपकार की
(iv) इनमें से कोई नहीं
(ग) गद्यांश के आधार पर लोक सेवा के कौन-से रूप हैं?
(1) देश-सेवा
(ii) साहित्य-सेवा
(iii) (i) और (ii) दोनों (iv) दरिद्रता
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