2_3 ka yojeye pratilom kya hogs
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फिर से हो रही थी मुझे मोहब्बत उससे,
न खुलती आँख तो वो मेरा हो चुका होता।
उस शख्स को बिछड़ने का सलीका नहीं आता,
जाते जाते खुद को मेरे पास छोड़ गया।
राज़ खोल देते हैं नाजुक से इशारे अक्सर,
कितनी खामोश मोहब्बत की जुबान होती है।
लेना पड़ेगा इश्क में तर्क-ए-वफ़ा से काम,
परहेज इस मर्ज़ में है बेहतर इलाज से।
इश्क में जिस ने भी बुरा हाल बना रखा है।
वही कहता है अजी इश्क में क्या रखा है।
खुदा से माँगते तो मुद्दतें गुजर गयीं,
क्यूँ न मैं आज उसको उसी से माँग लूँ।
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