2 आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है - भूमिका एवं इतिहास, कुछ आविष्कारों के नाम, उपयोगिता, सामाजिक आवश्यकता से संबंध
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आवश्यकता आविष्कार की जननी है
यह मुहावरा शताब्दियों से उपयोग में रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इस पुराने मुहावरे के मूल लेखक का पता नहीं लगाया जा सकता इसलिए इस प्रसिद्ध कहावत के जन्म के लिए ग्रीक दार्शनिक प्लेटो को जिम्मेदार माना जाता है। इसके मुहावरे के अस्तित्व में आने से पहले इसका विचार बहुत पहले लैटिन और अंग्रेजी भाषा में इस्तेमाल किया गया था।
इस कहावत का लैटिन संस्करण "मेटर अट्रिअम जरूरीतास" 1519 में लेखक विलियम होर्म द्वारा लिखी गई पुस्तक वुल्गारिया में सामने आया। इसी तरह की एक कहावत, "नीड टौट हिम विट" उसी वर्ष अंग्रेजी में छपी थी। "नेसेसिटी, सभी जरूरतों का आविष्कार" एक और समान पुस्तक थी जो 1545 में रोजर असम के काम के रूप में सामने आया था।
मुहावरा "आवश्यकता आविष्कार की जननी है" का इस्तेमाल वर्तमान में रिचर्ड फ्रैंक के काम में 1658 में हुआ था।
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
इस पुरानी कहावत का एक उपयुक्त उदाहरण इस धरती पर आए पहला व्यक्ति का होगा। यह मानवीय आवश्यकता ही थी जिसने पहले व्यक्ति को खाने के लिए भोजन खोजने, रहने के लिए घर का निर्माण करने और जंगली जानवरों से बचने के लिए हथियार बनाने का कार्य किया। जिस तरह से यह सब किया जाना था उन्होंने इन सभी कार्यों को बिना किसी पूर्व ज्ञान के पूरा किया। यदि इन सभी चीजों की मनुष्य अस्तित्व के लिए ज़रूरत नहीं होती तो वह इन सभी का आविष्कार नहीं करता।
निष्कर्ष
"आवश्यकता आविष्कार की जननी है" इस कहावत का एक-एक शब्द सच है। इससे पता चलता है कि अगर कोई भी व्यक्ति किसी चीज़ को प्राप्त करने का इच्छुक हो तो यह प्रक्रिया कितनी भी मुश्किल हो वह किसी भी तरह से इसको प्राप्त कर लेगा।