2. अमित और सुनीता में क्या समानता थी?
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1935 में जैनेंद्र कुमार के दूसरे उपन्यास 'सुनीता' का प्रकाशन हुआ। आरंभ में इसका दो तिहाई अंश चित्रपट में प्रकाशित हुआ था। गुजराती की एक पत्रिका में यह धारावाहिक रूप से अनूदित भी हुआ। 'सुनीता' और जैनेंद्र की पूर्वप्रकाशित औपन्यासिक कृति 'परख' के कथानक में दृष्टिकोणगत बहुत कुछ समानता है। इस उपन्यास की कमियाँ भी स्पष्ट है। इसके पात्र-पात्रियों के व्यवहार और प्रतिक्रियाएँ निरुद्देश्य एवं अप्रत्याशित लगती हैं। अप्रत्याशित व्यवहार प्रदर्शन की भावना के कारण ही उपन्यास में क्षीण स्थल आए हैं। उपन्यासकार का पहेली बुझाने का आग्रह कृति में हलकापन ला देता है, परंतु कहीं-कहीं उपन्यास के चरित्र अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करके अतिशय उच्चता का परिचय देते हैं। जैनेंद्र का अटपटी कथा शैली इस उपन्यास में सहजता, स्वाभाविकता से युक्त प्रतीत होती है।
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