2) अनुच्छेद लेखन:- " बच्चों की शिक्षा में माता-पिता की भूमिका (5)
.शिक्षा और माता-पिता
उत्तरदायित्व
शिक्षा
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Answer:
माता-पिता संतान के जन्मदाता ही नहीं, सब कुछ होते हैं। भारतीय परंपरा तो माँ के चरणों में स्वर्ग मानती है ।भारतीय परम्परा मई अभिभावकों की अहम् भूमिका रही है-बच्चे के व्यक्तित्व-निर्माण में। आज भारतीय जीवन में पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव से भौतिकवादी बुधिप्रधान दृष्टिकोण व्याप्त हो रहा है। सामाजिक परिवेश में परिवर्तन आ रहा है। आज माता-पिता की संतान से आकांक्षाएँ भारतीय मूल से परिवर्तित रूप में प्रकट हो रहा है। संतान भी पाश्चात्य प्रभाव से प्रभावित होकर अधिकारों का रोना रो रही हैं, कर्तव्य नाम की चीज तो आज की संतान के शब्दकोश में है ही नहीं। माता-पिता को संतान की शिक्षा-प्राप्ति में अहम भूमिका निभानी होती है। माता-पिता को अपने बच्चों की शिक्षा से संबंधित सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ उनको स्वतंत्र-चिंतन, कार्य-पद्धति तथा व्यवहार की छूट देनी होगी।
अपरिपक्व बुधि को परिपक्व होने में अपना संयम-पूर्ण योगदान देना होगा। आज की व्यस्त जिंदगी में अभिभावकों को समय निकालकर भौतिक सुखों के साथ अपनी मौजूदगी का अहसास बच्चों में भरना होगा। अपनी आवश्यकता थोपने के स्थान पर अहसास की भावना भरनी होगी। विचारों में समन्वय करना होगा। प्रसाद जी ने मानो माता-पिता को यही संदेश देते हुए कहा है-
Answer:
बच्चों की शिक्षा में अभिभावकों की भूमिका
Explanation:
माता-पिता केवल हमें जन्म देने वाले भर नहीं हैं वे हमारे जीवन में सब कुछ होते हैं. सनातन संस्कृति में माँ बाप के चरणों को स्वर्ग कहा गया हैं. हमारे समाज में बच्चें के जीवन में माता पिता को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हैं. माँ को बच्चें की प्रथम गुरु अथवा शिक्षिका भी कहा जाता हैं, तथा परिवार को बालक की प्रथम पाठशाला की संज्ञा दी जाती हैं. बच्चें के व्यक्तित्व की नींव परिवार में ही पड़ती हैं जहाँ से उसकी औपचारिक शिक्षा की शुरुआत हो जाती हैं. बालक के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया में सबसे बड़ा कारक उसके माता पिता एवं पारिवारिक प्रष्ठभूमि होती हैं जिसे वंशानुगत और वातावरण कहा जाता हैं.
मैकाली की शिक्षा प्रणाली ने निश्चय ही प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति से हमें बहुत दूर कर दिया हैं, जिसमें बालक के गुरु एवं माता पिता के साथ विशिष्ट सम्बन्ध हुआ करते थे. पश्चिमी भौतिकवादी नजरिये के अनुकरण के फलस्वरूप हमारी शिक्षा में भी इसका बड़ा प्रभाव देखने को मिलता हैं. हमारी शिक्षा बालकों को मौलिक अधिकारों के विषय में तो बहुत कुछ सिखाती हैं, मगर कर्तव्यों दायित्वों के नाम पर चुप्प ही प्रतीत होती हैं. निसंदेह बालक की शिक्षा में माता पिता की भूमिका उतनी ही हैं जितनी की एक शिक्षक की होती हैं.
यूनेस्को के अनुसार, “माता-पिता अपने बच्चों के पहले शिक्षक होते हैं”। उनका सहयोग बच्चे की पढ़ाई और विकास को प्रभावित करता है।
एक सफल अभिभावक के सहयोग के लिए, आपको शिक्षकों के साथ निरंतर बातचीत करने की आवश्यकता होती है। चूंकि बच्चे की शिक्षा और सम्पूर्ण विकास महत्वपूर्ण है, तो ऐसे में एक मजबूत साझेदारी के अलावा कुछ भी मायने नहीं रखता है। माता-पिता और शिक्षक दोनों अपने अवरोधों को दूर करते हैं और एक साझा लक्ष्य की दिशा में काम करने के लिए तैयार रहते हैं। एक नये शिक्षा प्रणाली को अपनाने के साथ-साथ आप आसानी से शिक्षकों के साथ बातचीत कर सकते हैं। एनईपी 2020 को धन्यवाद, जल्द ही एडटेक व्यवसाय के तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जो एक मजबूत शिक्षा प्रणाली का मार्ग प्रशस्त करता है और अधिक डिजिटल संचार तंत्र प्रदान करता है।