Hindi, asked by harib9767, 6 months ago

2. अस्तित्व की निरर्थकता और चेतना की अर्थहीनता​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

जो लोग दर्शनशास्त्र से वाकिफ ना हो उन्हें बता देना उचित है की भारतीय दर्शन में हम विषयों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं–जड़ और चेतन। सामान्य भाषा में आप जड़ता से उन चीज़ों को जोड़ें जिन पर अपने आस पास हो रही घटनाओं का कोई असर नहीं होता। आज कुशासन की हदें पार कर चुकी हमारी सरकारों और क्रूरता की हदें पार करते हमारे समाज को देख कर ये निष्कर्ष आसानी से निकाला  जा सकता हैं की हम जड़ हो चुके हैं। जड़ता को चेतना का अभाव भी कहा जाता है इस लिये चेतना को समझना ज़रूरी हो जाता है।

किसी भी पाश्चात्य दर्शन में चेतना का उतना सटीक वर्णन नहीं जितना भारतीय दर्शन में। अन्य पूर्वी दर्शनों में चेतन तत्व का उल्लेख “ची” के रूप में आता है। हमारा दर्शन केवल ब्रह्म (परमात्मा) को चेतन मानता है। परमात्मा का अंश होने की वजह से आत्मा भी चेतन है साथ हीं यह भी की आत्मा “क्रियाहीन दृष्टा” है। इसमें भी द्वैत और अद्वैत सिद्धांतों के अलग-अलग मत है पर हम उसपर चर्चा नहीं करेंगे। हमारे शरीर में आत्मा का निवास होने से हम चेतन हैं पर आत्मा के ऊपर “मन” का आधिपत्य हो जाने से हम जड भी हो सकते हैं।

इस बात का उल्लेख करना चाहेंगे की अगर आप किसी विषय को एक पांच साल के बच्चे को नहीं समझा सकते तो यह मानें की आप खुद उस विषय को नहीं समझते । इसलिये कि आप इन विषयों को किसी बच्चे को समझाने के लिहाज़ से पढ़ें।

आत्मा और मन

“आत्मा” और “मन” के बीच अंतर स्थापित करने के लिये एक हम एक छोटा उदाहरण ले सकते हैं । हम सब ने अपने जीवन में “पाप” किये होंगे (यहां पाप का तात्पर्य “जानबूझकर की गई गलती” से है)। थोडा रुक कर आप मन में उस पल का चित्रण करें जब आपने सर्वप्रथम वह पाप किया था। यह बहुत साधारण सी घटना भी हो सकती है। अब याद करें.. जब आप वह कृत्य कर रहे थे, तब आपके अंदर कोई1 जानता था की आप गलत कर रहे हैं। साथ ही कोई2 आपको आगे बढनें के लिए भी कह रहा था। आप समझ चुके होंगे!

बीसवीं शताब्दी के दार्शनिक आंदोलन “अस्तित्ववाद” ने प्रत्येक मानव के अस्तित्व की विशिष्टता को स्वतंत्र रूप से आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया। अस्तित्ववाद मानव अस्तित्व को अस्पष्ट मानता है, और किसी के कृत्यों के परिणामों के लिए “निर्णय” और “जिम्मेदारी की स्वतंत्रता” पर जोर देता है। सीधे शब्दों में आप विशेष हैं और अपने जीवन के लिये आप स्वयं ज़िम्मेवार है। ऐसा तो सदियों से माना जाता रहा है कि मनुष्य चेतन अस्तित्व के सबसे ऊपरी पायदान पर है, विशेष है। लेकिन ऊपर के उदाहरण में हमने देखा की “सही निर्णय” लेने की क्षमता तो केवल आत्मा में है, मन में नहीं। मन तो केवल भौतिकता की और भागता है।  तो “उनके” लिये आप पर राज करते रहने का सबसे आसान तरीका है आपको आपकी आत्मा से विमुख रखना।

चेतना का सीधा असर भौतिकता पर पडता है। नीचे दिये गये तीनो विडियो चेतना के प्रमाण हैं जो वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किये जा चुके है पर इनका जिक्र कहीं नहीं किया जाता। यहां विषय में थोडी क्लिष्टता है इसलिए पाठक जिन्हे विज्ञान के विषय में कम जानकारी हो, थोडा समय लें, सारांश समझें तब विडियो देखें।

जिन लोगों ने 12वीं में भौतिकी का अध्ययन किया होगा उन्हें “यंगस् डबल स्लिट एक्स्पेरीमेंट” के बारे में पता होगा। परीपेक्ष यह की “लाइट” के गुणों में अंतर्द्वंद्व है। वह कभी “पार्टिकल” के गुण दिखाता है तो कभी “वेव” (लहर – ऊर्जा) के। कौन सा गुण उसके साथ सबसे सटीक बैठता यह जानने के लिये भौतिक विज्ञानी थामस यंग द्वारा एक प्रयोग किया गया जिससे चौंकाने वाले परिणाम सामने आए। संलग्न विडियो “वाट द ब्लीप डू वी नो” नामक डाक्युमेंट्री का अंश है। जिसमें कार्टून  (चलचित्र) के माध्यम से यह प्रयोग दिखाते हुए इसका आशय स्पष्ट किया गया है।

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