2. बच्चे में स्वतत्व का विकास कैसे होता है?
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दो वर्षो में उसमें महत्वपूर्ण परिवर्तन बड़ी तेजी से आते हैं यथा: रेंगना या खिसकना, बैठना, चलना और बोलना| इसके अतिरिक्त अन्य परिवर्तन भी आते हैं जिन्हें स्पष्टत: नहीं देखा जा सकता| प्रत्येक शिशु अपने ढंग से अपनी गति एवं सीमा में विकसित होता है| शिशु की आयु वृद्धि के साथ ही उसकी वैयक्तिकता: अधिक नियमित एवं सुस्पष्ट होती जाती है|
भूमिका
जैसा कि अनुभाग में वर्णित है, एक नवजात शिशु जन्म से ही अपने परिवेश के प्रति संवेदना और अनुक्रिया की क्षमता रखता है| उसमें चयनात्मक अवधान एवं अधिगम की भी क्षमता होती है परंतु वह शरीरिक रूप से अपरिपक्व एवं पारिश्रत होता है| उसमें संज्ञानात्मक क्षमता सीमित होती है| परंतु बाद के दो वर्षो में उसमें महत्वपूर्ण परिवर्तन बड़ी तेजी से आते हैं यथा: रेंगना या खिसकना, बैठना, चलना और बोलना| इसके अतिरिक्त अन्य परिवर्तन भी आते हैं जिन्हें स्पष्टत: नहीं देखा जा सकता| ऐसे परिवर्तन शिशु में आन्तरिक स्तर पर घटित होते हैं| यद्यपि विकास आयु के प्रतिमानों के अनुरूप ही होता है तथापि प्रत्येक शिशु अपने ढंग से अपनी गति एवं सीमा में विकसित होता है| शिशु की आयु वृद्धि के साथ ही उसकी वैयक्तिकता: अधिक नियमित एवं सुस्पष्ट होती जाती है|
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