2. भारत में किसानों को किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
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Explanation:
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है। इसे सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कृषि पर बड़ी संख्या में लोगों की निर्भरता और औद्योगिकीकरण में कृषि क्षेत्र की भूमिका के रूप में भी देखा जाना चाहिए। देश में कई महत्त्वपूर्ण उद्योग कृषि उत्पाद (उपज) पर निर्भर हैं जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग या फिर लघु व ग्रामीण उद्योग, जिनके अंतर्गत तेल मिलें, दाल मिलें, आटा मिलें और बेकरी आदि आते हैं।
आजादी के बाद से भारतीय कृषि ने काफी बढ़िया काम किया है। वर्ष 1950-51 में खाद्यान्न उत्पादन 5.083 करोड़ टन था जो 1990-91 में बढ़कर 17.6 करोड़ टन हो गया। इस प्रकार खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। तिलहन, कपास और गन्ने के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है। परिणामस्वरूप, जनसंख्या में भारी वृद्धि होने के बावजूद अनेक कृषि जिन्सों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में सुधार आया है। विकास प्रक्रिया की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस बात का प्रमाण हमें इस तथ्य से पता चलता है कि हाल के वर्षों में सूखे वाले वर्ष में खाद्यान्न उत्पादन और उससे पहले के अधिक उत्पादन वाले वर्ष के खाद्यान्न का अंतर, पचास और साठ के दशकों की तुलना में कम है। अब हमें कुपोषण या अल्प-पोषण की वजह से अकाल व महामारी जैसी स्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता है जैसा कि सदी के आरम्भिक दौर में करना पड़ता था।
मुख्य रूप से सिंचाई सुविधाओं के विस्तार की बदौलत यह स्थिति आई है। इस समय कुल बुआई क्षेत्र के 32 प्रतिशत हिस्से में सिंचाई सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कृषि विकास की प्रक्रिया में बड़ी संख्या में किसानों द्वारा आधुनिक तौर तरीके अपनाया जाना और सरकारी निजी व सहकारी क्षेत्रों में किसानों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संस्थानों के जाल बिछाने से भी मदद मिली है।
चुनौतियाँ
फिर भी, भारतीय कृषि के सामने न सिर्फ अपने मामले में बल्कि समग्र आर्थिक स्थिति के एक हिस्से के रूप में भी अनेक बड़ी चुनौतियाँ हैं। यहाँ इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था, अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों से महत्त्वपूर्ण रूप से जुड़ी हुई है। और अर्थव्यवस्था दूसरे क्षेत्रों को प्रभावित करती है तथा उनसे प्रभावित होती है। कृषि अर्थव्यवस्था के अस्तित्व को अब समग्र आर्थिक स्थिति के बाहर देखना संभव नहीं है। ऐसा इसलिये है क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों में कृषि बाजार एक दूसरे से जुड़ते जा रहे हैं। कृषि के आधुनिकीकरण से अभिप्राय आदानों पर बढ़ती निर्भरता से भी है। यह निर्भरता सिर्फ स्थानीय रूप से उपलब्ध आदानों तक ही सीमित नहीं है बल्कि औद्योगिक क्षेत्रों के उत्पादनों पर भी है जैसे रसायन उद्योग, आटोमोबाइल मशीन निर्माण से जुड़े उद्योग आदि। इस क्रम (प्रक्रिया) में देश में कृषि का विकास कोई विलक्षण बात नहीं है बल्कि कमोवेश वैसी ही प्रवृत्ति की तरह है जैसी यह विश्व के अन्य हिस्सों, विशेषकर विकसित देशों मे देखी गई है। इस प्रकार जब हम भारतीय कृषि की चुनौतियों पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि कुछ चुनौतियाँ स्वयं उस (कृषि) क्षेत्र के लिये विशिष्ट हैं जबकि अन्य चुनौतियाँ कमोवेश बाकी सभी आर्थिक गतिविधियों में समान है।
देश के सामाजिक-आर्थिक विकास प्रक्रिया क्रम में जो बड़ी चुनौतियाँ हैं, उन पर नीचे विचार किया गया हैः