2. भारतीय संविधान की रचना के किन्हीं चार चरणों का उल्लेख करें।
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sorry I dont know the answer
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Answer: संविधान की रचना के पूर्व की घटनाएं
हमारा संविधान क्रांति का परिणाम नहीं है। यह लगभग सौ वर्ष के प्रयासों का परिणाम है। इसके लिए अनेक प्रकार से प्रयास किए गए। इनमें असंख्य लोगों की भागीदारी थी। कुछ शस्त्रधारी थे, और कुछ अहिंसकस्वतंत्रता के लिए समर्पित अनेक व्यक्तियों और संस्थाओं के सामूहिक प्रयत्नों का फलन हमारा संविधान है।
1857 का संग्राम और महारानी की घोषणा
1857 में उत्तर भारत में स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए सैनिकों और जनता ने शस्त्र ग्राम और धारण कर अंग्रेजों से संघर्ष किया । अनेक कारणों से यह आंदोलन असफल रहा। अंग्रेजों ने इसका दमन करते हुए नृशंस अत्याचार किए। राजनीतिक परिवर्तन यह हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त होकर इंग्लैंड के शासक का सीधा शासन लागू हो गया। महारानी विक्टोरिया ने 1 नवंबर 1858 को एक विस्तृत घोषणा की। देशी रियासतों के राजाओं को यह आश्वासन दिया गया कि उनके साथ जो संधियां और वचनबंध हुए हैं उनका सम्मान होगा और अक्षरशः पालन किया जाएगा। घोषणा में यह स्पष्ट कहा गया कि स्थानीय जनता को बलपूर्वक ईसाई नहीं बनाया जाएगा।
भारतीय संसद की मांग
लगभग इसी समय हिंदू पेट्रियट में लिखकर भारतीय संसद् की मांग श्री हरिश्चंद्र मुखर्जी ने की।
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861
1858 की विक्टोरिया की घोषणा के पश्चात् भारतीय परिषद् अधिनियम, 1861 और उसके बाद भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 पारित किए गए। इन अधिनियमों में सपरिषद् गवर्नर और सपरिषद् गवर्नर जनरल का गठन और उनकी शक्तियां अधिकथित की गई। अभी तक परिषद् में केवल शासन के प्रतिनिधि होते थे। अब पहली बार इसमें परिवर्तन किया गया। परिषद् में (कम से कम 6 और अधिक से अधिक 12) अतिरिक्त सदस्य सम्मिलित करने की छूट दी गई। इनका कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया। यह विहित किया गया कि इनमें से कम से कम आधे अशासकीय होंगे। ये अशासकीय सदस्य जनता द्वारा निर्वाचित नहीं होते थे। इन्हें सरकार अपनी पसंद से चुनती थी।
परिषद् का कार्य विधि और विनियम बनाना था। परिषद् में विधान बनाने का ही प्रस्ताव आ सकता था और कोई नहीं। विधान निर्माण में भी गवर्नर जनरल में अध्यारोही शक्तियां निहित थीं। सभी महत्त्वपूर्ण विधेयकों के लिए उसकी पूर्व मंजूरी की अपेक्षा थी। वह किसी भी विधेयक को वीटो कर सकता था या सम्राट की अनुमति के लिए आरक्षित कर सकता था। वह अध्यादेश द्वारा विधायन कर सकता था।
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892
भारतीय परिषद् अधिनियम, 1892 द्वारा अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। अब ये कम से कम 10 और अधिक से अधिक 16 हो सकते थे। विधान परिषदों की शक्तियों में भी वृद्धि की गई। इस अधिनियम के अधीन नए नियम बनाकर सदस्यों को प्रश्न पूछने की अनुमति दी गई इस पर कुछ निर्बधन भी थे अर्थात् कुछ विषयों पर प्रश्न नहीं पूछे जा सकते थे। सदस्य बजट पर भी विचार विमर्श कर सकते थे।
मिंटो मार्ले सुधार, 1909
1892 के अधिनियम के पश्चात् जो संविधायी अधिनियम बना वह था भारतीय परिषद् अधिनियम, 1909। उस समय भारत के लिए सेक्रेटरी आफ स्टेट थे लार्ड मालें और भारत में गवर्नर जनरल थे लार्ड मिंटो। इन दोनों ने जिन सुधारों का प्रस्ताव किया था उन्हें इस अधिनियम द्वारा लागू किया गया था।
परिषद् की सदस्य संख्या बढ़ा दी गई। अशासकीय अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 24 कर दी गई किंतु बहुमत शासकीय सदस्यों का ही बना रहा। इनके कृत्य भी अधिक हो गए। उन्हें यह अधिकार दिया गया कि बजट पर विभाजन की मांग कर सकें। जो सदस्य प्रश्न पूछता था वह अनुपूरक प्रश्न भी पूछ सकता था।
इस अधिनियम से जो परिवर्तन किया गया उसमें सबसे दुखदायी था पृथक् निर्वाचक मंडल और मुसलमानों के लिए स्थान आरक्षण। इसी बीज का परिणाम हुआ देश का विभाजन।
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