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भावार्थ
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय' कनक नंद कैं आँगन बिंब पकरिबैं धावत॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत साजति वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत॥
कनक भूमि पर कर पग छाया, यह उपमा इक राजति ।
प्रतिकर प्रतिपद" प्रतिमान बसुधा, कमल बैठकी साजति" ॥
बालदसा सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति ॥
सूरदास
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किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय' कनक नंद कैं आँगन बिंब पकरिबैं धावत॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत साजति वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत॥
कनक भूमि पर कर पग छाया, यह उपमा इक राजति ।
प्रतिकर प्रतिपद" प्रतिमान बसुधा, कमल बैठकी साजति" ॥
बालदसा सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति ॥
भावार्थ :--- यह पंक्तियाँ सुरदार द्वारा लिखी गई है |
सूरदास जी कहते है , श्री कृष्ण के बचपन का वर्णन किया गया है | छोटे से बच्चे के जब दांत निकलते है ,, उसके बारे में बताया है | जब श्री कृष्ण घुटनों के बल आते है , साथ में किलकारियां मारते हुए आते है | मणियों के नंद राजा के आंगन में आते है | अपनी परछाई को पकड़ने के लिए आते है | अपनी परछाई को पकड़ना चाहते है | उनके छोटे-छोटे दांत हँसते हुए बहुत अच्छे लगते है | सोने की भूमि पर उस पर हाथ और पैर की छाया को देखकर तुलना कर सकते है |
सोने की भूमि पर हाथ और चरणों की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा शोभा देनेवाली है कि मानो पृथ्वी प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके लिये आसन सजाती है । बच्चों की दशा का सुख देख कर माता यशोदा बार बार राजा नंद को बुलाती है | अपने आंचल में छुपा देती है और उन्हें दूध पिलाती है |
Answer:
- भावार्थ:---
- सूरदास जी कहते है , श्री कृष्ण के बचपन का वर्णन किया गया है | छोटे से बच्चे के जब दांत निकलते है ,, उसके बारे में बताया है | जब श्री कृष्ण घुटनों के बल आते है , साथ में किलकारियां मारते हुए आते है | मणियों के नंद राजा के आंगन में आते है | अपनी परछाई को पकड़ने के लिए आते है | अपनी परछाई को पकड़ना चाहते है | उनके छोटे-छोटे दांत हँसते हुए बहुत अच्छे लगते है | सोने की भूमि पर उस पर हाथ और पैर की छाया को देखकर तुलना कर सकते है |
- सोने की भूमि पर हाथ और चरणों की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा शोभा देनेवाली है कि मानो पृथ्वी प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके लिये आसन सजाती है । बच्चों की दशा का सुख देख कर माता यशोदा बार बार राजा नंद को बुलाती है | अपने आंचल में छुपा देती है और उन्हें दूध पिलाती है |
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