2. भाव स्पष्ट कीजिए-
प्रभूता की शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चदिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
Answers
Explanation:
Jis Prakar Ek Pyasa Mrig Garmi ke registan mein Ki Mitti ko chilchilati dhup Mein Is chilchilati Mitti Ko Jal samajhkar is Peene Ke Liye todta Hai Magar per use Nahin prapt hota hai Usi Prakar ka beta ka Sharan Prem pane ke liye manushya Ke Piche hi Darta rahata Hai Magar Kuchh Nahin pata
=> भाव यह है कि प्रभुता का शरणबिंब अर्थात् ‘बड़प्पन का अहसास’ एक छलावा था भ्रम मात्र है जो मृग मारीचिका के समान है। जिस प्रकार हिरन रेगिस्तान की रेत की चमक को पानी समझकर उसके पास भागकर जाता है, परंतु पानी न पाकर निराश होता है। इसी बीच वह अन्यत्र ऐसी ही चमक को पानी समझकर भागता-फिरता है। इसी प्रकार मनुष्य के लिए यह ‘बड़प्पन का भाव’ एक छल बनकर रह जाता है। मनुष्य को याद रखना चाहिए कि चाँदनी रात के पीछे अमावस्या अर्थात् सुख के पीछे दुख छिपा रहता है। मनुष्य को सुख-दुख दोनों को अपनाने के लिए तत्पर रहना चाहिए।