[2]
E-3194
(ख) हमें भी कैद में समझो, बेटी हमारे गुनाहों ने हमें चारों तरफ से घेर
रखा है। जमीर की जंजीरों ने भी हमारे हाथ-पैर बाँध लिए हैं। हम
अब इस दुनिया को आँख उठाकर भी नहीं देख सकते। जिस
सल्तनत को खून से सींच-सींचकर हमने इतना बड़ा किया है उसे
अगर अब आँसुओं से भी सींचना चाहें तो हमें पूरी जिंदगी चाहिए।
वह हमारे पास कहाँ है ?
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E-3194
(ख) हमें भी कैद में समझो, बेटी हमारे गुनाहों ने हमें चारों तरफ से घेर
रखा है। जमीर की जंजीरों ने भी हमारे हाथ-पैर बाँध लिए हैं। हम
अब इस दुनिया को आँख उठाकर भी नहीं देख सकते। जिस
सल्तनत को खून से सींच-सींचकर हमने इतना बड़ा किया है उसे
अगर अब आँसुओं से भी सींचना चाहें तो हमें पूरी जिंदगी चाहिए।
वह हमारे पास कहाँ है ?
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(ख) हमें भी कैद में समझो, बेटी हमारे गुनाहों ने हमें चारों तरफ से घेर
रखा है। जमीर की जंजीरों ने भी हमारे हाथ-पैर बाँध लिए हैं। हम
अब इस दुनिया को आँख उठाकर भी नहीं देख सकते।
सल्तनत को खून से सींच-सींचकर हमने इतना बड़ा
किया है उसे
अगर अब आँसुओं से भी सींचना चाहें तो हमें पूरी जिंदगी चाहिए |
वह हमारे पास कहाँ है ?
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