Hindi, asked by meenaghunawat1986, 6 months ago

2. फिर यहाँ कवि-सम्मेलन होने लगे तो हम लोग भी उनमें
जाने लगे। हिंदी का उस समय प्रचार-प्रसार था। मैं सन् 1917
में यहाँ आई थी। उसके उपरांत गांधी जी का सत्याग्रह आरंभ
हो। गया और आनंद भवन स्वतंत्रता के संघर्ष का केंद्र हो
गया। जहाँ-तहाँ हिंदी का भी प्रचार चलता था। कवि-
सम्मेलन होते थे। तो क्रास्थवेट से मैडम हमको साथ लेकर
जाती थीं। हम कविता सुनाते थे। कभी हरिऔध जी अध्यक्ष
होते थे, कभी श्रीधर । पाठक होते थे, कभी रत्नाकर जी होते
थे, कभी कोई होता था। कब हमारा नाम पुकारा जाए, बेचैनी
से सुनते रहते थे। मुझको प्रायः प्रथम पुरस्कार मिलता था।
सौ से कम पदक नहीं मिले होंगे उसमें ।
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Answered by jashanrandhawa72678
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